रचनाकार : अज्ञात
विशेष नोट : यह मेरे बचपन की सबसे मीठी यादों में से एक है... इसे और परीक्षा से ही जुड़ी एक अन्य कविता को मैंने सिर्फ एक-एक बार सुनकर याद किया था, और आज भी बिना रुके टाइप करता चला गया...
हे प्रभो, इस दास की, इतनी विनय सुन लीजिए,
मार ठोकर नाव मेरी, पार कर ही दीजिए...
मैं नहीं डरता प्रलय से, मौत या तूफ़ान से,
कांपती है रूह मेरी, बस सदा इम्तिहान से...
पाठ पढ़ना, याद करना, याद करके सोचना,
सोचकर लिखना उसे, लिखकर उसे फिर घोटना...
टांय टा टा टांय टा टा, रोज़ रटता हूं प्रभो,
पुस्तकों के रात-दिन, पन्ने उलटता हूं प्रभो...
भाग्य में लेकिन न जाने, कौन-सा अभिशाप है,
रात को रटता, सुबह मैदान मिलता साफ़ है...
पी गई इंग्लिश, हमारी खोपड़ी के खून को,
मैं समझ पाया नहीं, इस बेतुके मजमून को...
क्या करूं, हर शब्द के हिज्जे सताते हैं मुझे,
स्वप्न में भी कीट्स औ' शैली, नज़र आते मुझे...
अक्ल अलजेब्रा हमारी, जाएगा जड़ से पचा,
तीन में से छः गए तो और बाकी क्या बचा...
नाश हो इतिहास का, सन के समंदर बह गए,
मर गए वे लोग, रोने के लिए हम रह गए...
शाहजहां, बाबर, हुमायूं, और अकबर आप थे,
कौन थे बेटे न जाने, कौन किसके बाप थे...
भूगोल में था प्रश्न आया, गोल है कैसे धरा,
और मैंने एक क्षण में, लिख दिया उत्तर खरा...
गोल है पूरी-कचौरी, और पापड़ गोल है,
गोल रसगुल्ला, जलेबी गोल, लड्डू गोल है...
गोलगप्पा गोल है, मुंह भी हमारा गोल है,
इसीलिए हे मास्टरजी, यह धरा भी गोल है...
झूम उठे मास्टरजी, इस अनोखे ज्ञान पे,
और उन्होंने पेपर पर लिख दिया यह शान से...
ठीक है बेटा, हमारी लेखनी भी गोल है,
गोल है दवात, नम्बर भी तुम्हारा गोल है...
राम-रामौ, राम-रामौ, हाय प्यारी संस्कृतम्,
तुम न आईं, मर गया मैं, रच्छ-गच्छ कचूमरम्...
अंड-वंडम्, चंड-खंडम्, रुण्ड-मुण्ड चराचरम्,
चट्ट रोटी, पट्ट दालम्, चट्ट-पट्ट सफाचटम्...
मार ठोकर नाव मेरी, पार कर ही दीजिए...
मैं नहीं डरता प्रलय से, मौत या तूफ़ान से,
कांपती है रूह मेरी, बस सदा इम्तिहान से...
पाठ पढ़ना, याद करना, याद करके सोचना,
सोचकर लिखना उसे, लिखकर उसे फिर घोटना...
टांय टा टा टांय टा टा, रोज़ रटता हूं प्रभो,
पुस्तकों के रात-दिन, पन्ने उलटता हूं प्रभो...
भाग्य में लेकिन न जाने, कौन-सा अभिशाप है,
रात को रटता, सुबह मैदान मिलता साफ़ है...
पी गई इंग्लिश, हमारी खोपड़ी के खून को,
मैं समझ पाया नहीं, इस बेतुके मजमून को...
क्या करूं, हर शब्द के हिज्जे सताते हैं मुझे,
स्वप्न में भी कीट्स औ' शैली, नज़र आते मुझे...
अक्ल अलजेब्रा हमारी, जाएगा जड़ से पचा,
तीन में से छः गए तो और बाकी क्या बचा...
नाश हो इतिहास का, सन के समंदर बह गए,
मर गए वे लोग, रोने के लिए हम रह गए...
शाहजहां, बाबर, हुमायूं, और अकबर आप थे,
कौन थे बेटे न जाने, कौन किसके बाप थे...
भूगोल में था प्रश्न आया, गोल है कैसे धरा,
और मैंने एक क्षण में, लिख दिया उत्तर खरा...
गोल है पूरी-कचौरी, और पापड़ गोल है,
गोल रसगुल्ला, जलेबी गोल, लड्डू गोल है...
गोलगप्पा गोल है, मुंह भी हमारा गोल है,
इसीलिए हे मास्टरजी, यह धरा भी गोल है...
झूम उठे मास्टरजी, इस अनोखे ज्ञान पे,
और उन्होंने पेपर पर लिख दिया यह शान से...
ठीक है बेटा, हमारी लेखनी भी गोल है,
गोल है दवात, नम्बर भी तुम्हारा गोल है...
राम-रामौ, राम-रामौ, हाय प्यारी संस्कृतम्,
तुम न आईं, मर गया मैं, रच्छ-गच्छ कचूमरम्...
अंड-वंडम्, चंड-खंडम्, रुण्ड-मुण्ड चराचरम्,
चट्ट रोटी, पट्ट दालम्, चट्ट-पट्ट सफाचटम्...
श्रीमान विवेक जी
ReplyDeleteमुझे भी ये कविता बचपन से ही याद है।किंतु मुझे कुछ ऐसा याद है कि ये कविता एक बार टी वी पर मैने ओमप्रकाश आदित्य जी के मुँह से सुनी थी। इसमें हिन्दी के बारे में भी कुछ पंक्तिय़ाँ थी।
हाय हिन्दी की जगह मैं आज हिन्दा लिख गया
भैंस को पशु की जगह मैं तो परिन्दा लिख गया
मंजु
प्रिय मंजु जी... मुझे इस कविता के रचयिता के बारे में कोई जानकारी नहीं है... कोशिश करूंगा, 'आदित्य जी' के रचनाकार होने को लेकर कोई ठोस जानकारी हासिल कर सकूं...
ReplyDeleteitni funny poems , maine kabhi nahi padi .........
ReplyDeleteधन्यवाद पूनम... और भी कविताएं हैं... वे भी पढ़ें...
ReplyDeletechhate paragraph ke baad, do lines aur bhi hai...... kya karoon har shabd ke hijje satate hai mujhe, swapn mein bhi keets aur shaile (Mujhe spelling pata nahi hai) nazar aate hai mujhe.....
ReplyDeleteRachna, yeh dono lines kavita mein jod di hain... :-)
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