Tuesday, December 23, 2008

शिव का धनुष (काका हाथरसी)

रचनाकार : काका हाथरसी

विशेष नोट : काका हाथरसी बहुत छोटी-सी आयु (मेरी ही आयु की बात कर रहा हूं) से ही मेरे पसंदीदा हास्य कवि रहे हैं... उनकी एक बढ़िया कविता प्रस्तुत है...

विद्यालय में आ गए इंस्पेक्टर स्कूल,
छठी क्लास में पढ़ रहा विद्यार्थी हरफूल,
विद्यार्थी हरफूल, प्रश्न उससे कर बैठे,
किसने तोड़ा शिव का धनुष बताओ बेटे,
छात्र सिटपिटा गया बिचारा, धीरज छोड़ा,
हाथ जोड़कर बोला, सर, मैंने ना तोड़ा...

यह उत्तर सुन आ गया, सर के सर को ताव,
फौरन बुलवाए गए हेड्डमास्टर साब,
हेड्डमास्टर साब, पढ़ाते हो क्या इनको,
किसने तोड़ा धनुष नहीं मालूम है जिनको,
हेडमास्टर भन्नाया, फिर तोड़ा किसने,
झूठ बोलता है, जरूर तोड़ा है इसने...

इंस्पेक्टर अब क्या कहे, मन ही मन मुसकात,
ऑफिस में आकर हुई, मैनेजर से बात,
मैनेजर से बात, छात्र में जितनी भी है,
उसमें दुगुनी बुद्धि हेडमास्टर जी की है,
मैनेजर बोला, जी, हम चन्दा कर लेंगे,
नया धनुष उससे भी अच्छा बनवा देंगे...

शिक्षा-मंत्री तक गए जब उनके जज़बात,
माननीय गदगद हुए, बहुत खुशी की बात,
बहुत खुशी की बात, धन्य हैं ऐसे बच्चे,
अध्यापक, मैनेजर भी हैं कितने सच्चे,
कह दो उनसे, चन्दा कुछ ज्यादा कर लेना,
जो बैलेन्स बचे वह हमको भिजवा देना...

साभार: काका की विशिष्ट रचनाएं, डायमंड पॉकेट बुक्स

2 comments:

  1. हा हा हा....बहुत ही मजेदार प्रस्तुति...हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गए, लेकिन इस हँसी के बीच भी शिक्षण-व्यवस्था की मौजूदा सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता...

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  2. बिल्कुल सही कहा, दिवाकर भाई... काका की सभी कविताएं ऐसी ही हैं, मज़ेदार...

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