Thursday, July 29, 2010

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को...

विशेष नोट : मैंने जिस दिन यह भजन पहली बार सुना था, उसी दिन से याद है... शर्मा बंधुओं द्वारा गाया यह भजन मैं अक्सर गुनगुनाया करता हूं... आज आप सब लोगों के लिए भी प्रस्तुत है... सुनना भी चाहें, तो इसी पृष्ठ पर नीचे देखें...

फिल्म : परिणय
गीतकार :
रामानन्द शर्मा
संगीतकार :
जयदेव
गायक :
शर्मा बंधु

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाए तरुवर की छाया...
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया... मेरे राम...

भटका हुआ मेरा मन था, कोई मिल न रहा था सहारा...
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे, मिल न रहा हो किनारा...
मिल न रहा हो किनारा...
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया...
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया... मेरे राम...

शीतल बने आग चंदन के जैसी, राघव कृपा हो जो तेरी...
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें, जो थीं अमावस अंधेरी...
जो थीं अमावस अंधेरी...
युग-युग से प्यासी मरुभूमि ने, जैसे सावन का संदेस पाया...
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया... मेरे राम...

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो, उस पर कदम मैं बढ़ाऊं...
फूलों में खारों में, पतझड़-बहारों में, मैं न कभी डगमगाऊं...
मैं न कभी डगमगाऊं...
पानी के प्यासे को तक़दीर ने, जैसे जी-भर के अमृत पिलाया...
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जबसे शरण तेरी आया... मेरे राम...

Tuesday, July 27, 2010

देहि शिवा वर मोहि इहै... (श्री गुरु गोविन्द सिंह जी)

विशेष नोट : यह छुटपन से ही मेरी पसंदीदा उक्तियों में शामिल है... यह सवैया सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की रचना है, जिसे दशम् ग्रंथ, अथवा श्री दशम् ग्रंथ साहिब के खंड 'चंडी चरित्र उक्ति बिलास' में स्थान दिया गया है...

उल्लेखनीय है कि दशम् ग्रंथ को आमतौर पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है... एक ओर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जहां अध्यात्म के मार्ग पर चलकर मुक्ति का मार्ग बताता है, वहीं दशम् ग्रंथ में धर्म का ज़िक्र नाममात्र के लिए है... दशम् ग्रंथ का उद्देश्य जनसाधारण को अन्याय और अधर्म के विरुद्ध आवाज़ उठाने और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना था... श्री दशम् ग्रंथ साहिब के कुछ हिस्से - जपुजी साहिब, त्वै प्रसाद सवैये (अमृत सवैये) तथा बेनती (विनती) चौपाई आदि - सिखों की नित्य प्रार्थना (नितनेम) में शामिल हैं... दशम् ग्रंथ में सम्मिलित रचनाएं ब्रजभाषा में हैं, और गुरुमुखी लिपि में लिखी गई हैं...

एक और बात जानने योग्य है - सिखी से जुड़े सभी ग्रंथों आदि में सिख गुरुओं ने 'वाहेगुरु' (परमपिता परमात्मा) का उल्लेख करने के लिए कई हिन्दू-मुस्लिम नामों का प्रयोग किया है... इस सवैये में भी 'शिवा' का अर्थ 'वाहेगुरु' ही है, जो, एक है, अवर्णनीय है, अनदेखा है, और अनश्वर है... 

मूल गुरुमुखी लिपि में लिखा सवैया...

ਦੇਹਿ ਸ਼ਿਵਾ ਵਰ ਮੋਹਿ ਇਹੈ, ਸ਼ੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨਾ ਟਰੋਂ...
ਨ ਡਰੂੰ ਅਰਿ ਸੌਂ ਜਬ ਜਾਯਿ ਲਰੌਂ, ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ...
ਅਰੁ ਸਿਖਹੋੰ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ, ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋ...
ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ, ਅਥਿ ਹੀ ਰਣ ਮੈਂ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ...

देवनागरी (हिन्दी) लिपि में लिखा सवैया...

देहि शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन ते कबहूं न टरूं...
न डरूं अरि सौं जब जाइ लरूं, निसचै कर अपनी जीत करूं...
अरु सिखहों आपने ही मन कौ, इह लालच हउ गुन तउ उचरूं...
जब आऊ की अउध निदान बनै, अथि ही रन में तब जूझ मरूं...

The couplet in the Roman (English) script...

dehi Shiva var mohi ihai, shubh karman te kabahoo na Taroon...
na Daroon ari sau jab jaai laroon, nischai kar apni jeet karoon...
aru sikhho aapne hi man ko, ih laalach hau gun tau uchroon...
jab aau ki audh nidaan banai, athi hi ran mein tab joojh maroon...

इन पंक्तियों का हिन्दी में अर्थ है :
हे शिव (परमपिता परमात्मा), मुझे यही वर (वरदान) दीजिए, कि मैं शुभ कार्यों को करने से कभी पीछे न हटूं, उन्हें कभी न टालूं... जब भी मैं शत्रु से लड़ने जाऊं, मेरे भीतर डर के लिए कोई स्थान न हो, और मुझमें इतना आत्म-विश्वास हो, कि मैं दृढ़ निश्चय के साथ जाकर युद्ध करूं, और जीतकर लौटूं... मैं अपने हृदय को सदा आप ही के गुण और अच्छाइयां सीखने का लालच देता रहूं... और जब मेरे जीवन के अंतिम दिन आ जाएं, तो मैं युद्धभूमि में जोश के साथ सच के लिए लड़ता हुआ मरूं...

Translation in English (Courtesy: Wikipedia):
O Lord grant me the boon, that I may never deviate from doing a good deed...
That I shall not fear when I go into combat, and with determination I will be victorious...
That I may teach myself this greed alone, to learn only Thy praises...
And when the last days of my life come, I may die in the might of the battlefield...

Thursday, July 22, 2010

पानी और धूप... (सुभद्राकुमारी चौहान)

विशेष नोट : सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कई कविताएं हम सबने अपने स्कूली दिनों में पढ़ी हैं, परंतु यह कविता मुझे हाल ही में इंटरनेट पर कविताओं की एक वेबसाइट पर दिखी... अच्छी लगी, सो, आपके लिए भी प्रस्तुत है...

अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहां से यह पानी...
किसने फोड़ घड़े बादल के, की है इतनी शैतानी...

सूरज ने क्‍यों बंद कर लिया, अपने घर का दरवाज़ा...
उसकी मां ने भी क्‍या उसको, बुला लिया कहकर आजा...

ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं, बादल हैं किसके काका...
किसको डांट रहे हैं, किसने, कहना नहीं सुना मां का...

बिजली के आंगन में अम्‍मा, चलती है कितनी तलवार...
कैसी चमक रही है, फिर भी, क्‍यों खाली जाते हैं वार...

क्‍या अब तक तलवार चलाना, मां, वे सीख नहीं पाए...
इसीलिए क्‍या आज सीखने, आसमान पर हैं आए...

एक बार भी, मां, यदि मुझको, बिजली के घर जाने दो...
उसके बच्‍चों को, तलवार चलाना, सिखला आने दो...

खुश होकर तब बिजली देगी, मुझे चमकती-सी तलवार...
तब मां, कर न कोई सकेगा, अपने ऊपर अत्‍याचार...

पुलिसमैन, अपने काका को, फिर न पकड़ने आएंगे...
देखेंगे तलवार, दूर से ही, वे सब डर जाएंगे...

अगर चाहती हो, मां, काका जाएं अब न जेलखाना...
तो फिर बिजली के घर मुझको, तुम जल्‍दी से पहुंचाना...

काका जेल न जाएंगे अब, तुझे मंगा दूंगी तलवार...
पर बिजली के घर जाने का, अब मत करना कभी विचार...

Thursday, July 15, 2010

यह कदम्ब का पेड़... (सुभद्राकुमारी चौहान)

विशेष नोट : सुभद्राकुमारी चौहान द्वारा रचित कई कविताएं हम सबने अपने स्कूली दिनों में पढ़ी हैं, परंतु यह कविता मुझे हाल ही में इंटरनेट पर कविताओं की एक वेबसाइट पर दिखी... अच्छी लगी, सो, आपके लिए भी प्रस्तुत है...

यह कदम्ब का पेड़, अगर मां, होता यमुना तीरे...
मैं भी उस पर बैठ, कन्हैया बनता, धीरे-धीरे...

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी, तुम दो पैसे वाली...
किसी तरह नीची हो जाती, यह कदम्ब की डाली...

तुम्हें नहीं कुछ कहता, पर मैं, चुपके-चुपके आता...
उस नीची डाली से अम्मा, ऊंचे पर चढ़ जाता...

वहीं बैठ फिर, बड़े मजे से, मैं बांसुरी बजाता...
अम्मा-अम्मा, कह वंशी के स्वर में, तुम्हे बुलाता...

सुन मेरी बंसी, मां, तुम कितना खुश हो जातीं...
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं...

तुमको आती देख, बांसुरी रख, मैं चुप हो जाता...
एक बार मां कह, पत्‍तों में, धीरे से छिप जाता...

तुम हो चकित देखतीं, चारों ओर न मुझको पातीं...
व्‍या‍कुल सी हो तब, कदम्ब के नीचे तक आ जातीं...

पत्‍तों का मर-मर स्‍वर सुनकर, जब ऊपर आंख उठातीं...
मुझे देख ऊपर डाली पर, कितनी घबरा जातीं...

ग़ुस्‍सा होकर मुझे डांटतीं, कहतीं, नीचे आ जा...
पर जब मैं न उतरता, हंसकर कहतीं, मुन्‍ना राजा...

नीचे उतरो, मेरे भैया, तुम्‍हें मिठाई दूंगी...
नए खिलौने - माखन - मिश्री - दूध - मलाई दूंगी...

मैं हंसकर, सबसे ऊपर की, डाली पर चढ़ जाता...
वहीं कहीं पत्‍तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता...

बहुत बुलाने पर भी मां जब, नहीं उतरकर आता...
मां, तब मां का हृदय तुम्हारा, बहुत विकल हो जाता...

तुम आंचल फैलाकर अम्मा, वहीं पेड़ के नीचे...
ईश्वर से कुछ विनती करतीं, बैठी आंखें मीचे...

तुम्हें ध्यान में लगी देख, मैं धीरे-धीरे आता...
और तुम्हारे, फैले आंचल के नीचे छिप जाता...

तुम घबराकर आंख खोलतीं, पर मां खुश हो जातीं...
जब अपने मुन्ना राजा को, गोदी में ही पातीं...

इसी तरह कुछ, खेला करते, हम-तुम धीरे-धीरे...
यह कदम्ब का पेड़, अगर मां, होता यमुना तीरे...

Tuesday, July 13, 2010

आज हमारी छुट्टी है... (श्यामसुन्दर अग्रवाल)

विशेष नोट : अपने पुत्र सार्थक और पुत्री निष्ठा को सिखाने के लिए सदा कुछ नया ढूंढता रहता हूं, सो, अचानक श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल द्वारा लिखित यह कविता मिल गई... डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.कविताकोश.ओआरजी (www.kavitakosh.org) के अनुसार श्री अग्रवाल का जन्म पंजाब के कोटकपुरा में हुआ था... श्री अग्रवाल हिन्दी और पंजाबी भाषा में कविताएं रचने के अतिरिक्त कहानियां और लघुकथाएं लिखने, उनके सम्पादन तथा अनुवाद करने के लिए भी जाने जाते हैं... श्री अग्रवाल पिछले 21 वर्ष से लघुकथाओं की पंजाबी त्रैमासिक पत्रिका 'मिन्नी' के संयुक्त सम्पादक भी हैं...

रविवार का प्यारा दिन है,
आज हमारी छुट्टी है...

उठ जाएंगे क्या जल्दी है,
नींद तो पूरी करने दो...
बड़ी थकावट हफ्ते भर की,
आराम ज़रूरी करने दो...

नहीं घड़ी की ओर देखना,
न करनी कोई भागम-भाग...
मनपसंद वस्त्र पहनेंगे,
आज नहीं वर्दी का राग...

खाएंगे आज गर्म परांठे,
और खेलेंगे मित्रों संग...
टीचर जी का डर न हो तो,
उठती मन में खूब उमंग...

होम-वर्क को नमस्कार,
और बस्ते के संग कुट्टी है...
मम्मी, कोई काम न कहना,
आज हमारी छुट्टी है...
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