Tuesday, June 01, 2010

मेरे देश की धरती... (उपकार)

विशेष नोट : शायद ही कोई ऐसा हिन्दुस्तानी होगा, जिसने इस गीत को कभी न कभी सुना न होगा, या यूं कहिए, गुनगुनाया न होगा... मुझे भी यह गीत मेरे बचपन से ही कंठस्थ है... आज आप सब लोगों के लिए भी प्रस्तुत है...

फिल्म : उपकार
गीतकार : गुलशन बावरा
संगीतकार : कल्याणजी आनंदजी
पार्श्वगायक : महेन्द्र कपूर

मेरे देश की धरती सोना उगले,
उगले हीरे-मोती,
मेरे देश की धरती...

बैलों के गले में जब घुंघरू, जीवन का राग सुनाते हैं...
ग़म कोसों दूर हो जाता है, खुशियों के कंवल मुस्काते हैं...
सुन के रहट की आवाज़ें, यूं लगे कहीं शहनाई बजे...
आते ही मस्त बहारों के, दुल्हन की तरह हर खेत सजे...

मेरे देश की धरती...
मेरे देश की धरती सोना उगले,
उगले हीरे-मोती...
मेरे देश की धरती...

जब चलते हैं इस धरती पर हल, ममता अंगड़ाइयां लेती है...
क्यों ना पूजें इस माटी को, जो जीवन का सुख देती है...
इस धरती पे जिसने जन्म लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा...
यहां अपना-पराया कोई नही, है सब पे मां उपकार तेरा...

मेरे देश की धरती...
मेरे देश की धरती सोना उगले,
उगले हीरे-मोती...
मेरे देश की धरती...

ये बाग है गौतम-नानक का, खिलते हैं अमन के फूल यहां...
गांधी, सुभाष...
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक, ऐसे हैं चमन के फूल यहां...
रंग हरा हरी सिंह नलवे से...
रंग लाल है लाल बहादुर से...
रंग बना बसंती भगतसिंह...
रंग अमन का वीर जवाहर से...

मेरे देश की धरती...
मेरे देश की धरती सोना उगले,
उगले हीरे-मोती...
मेरे देश की धरती...

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