Wednesday, January 14, 2009

जागिये रघुनाथ कुंवर, पंछी बन बोले... (भजन)

विशेष नोट : बचपन में ही सुनता था, क्योंकि मां इसे ज़्यादा नहीं गातीं... नानीजी हमेशा गाती थीं, और उनके घर पर सुबह-सुबह हमेशा सुनाई देता था यह गीत...

जागिये रघुनाथ कुंवर, पंछी बन बोले...
जागिये रघुनाथ कुंवर, पंछी बन बोले...

चंद्र किरण शीतल भई, चकवी पिय मिलन गई,
त्रिविधमंद चलत पवन, पल्लव द्रुम डोले...
जागिये रघुनाथ कुंवर...

प्रातः भानु प्रकट भयो, रजनी को तिमिर गयो,
भृंग करत गुंजगान, कमलन दल खोले...
जागिये रघुनाथ कुंवर...

ब्रह्मादिक धरत ध्यान, सुर नर मुनि करत गान,
जागन की बेर भई, नैन पलक खोले...
जागिये रघुनाथ कुंवर...

तुलसीदास अति अनन्द, निरख के मुखारबिन्द,
दीनन को देत दान, भूषण बहु मोले...
जागिये रघुनाथ कुंवर...

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