Monday, March 28, 2011

बतूता का जूता... (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना)

विशेष नोट : यह बाल कवि‍ता स्वर्गीय श्री सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की रचना है... मैं बचपन में बहुत-सी बाल पत्रिकाएं पढ़ा करता था, जिनमें 'पराग' भी शामिल थी... श्री सक्सेना का नाम पहली बार उसी पत्रिका में सम्पादक के तौर पर पढ़ा था... अतिरिक्त जानकारी के तौर पर KavitaKosh.org से श्री सक्सेना का परिचय उपलब्ध करवा रहा हूं... श्री सक्सेना का जन्म बस्ती जिले के एक गांव में हुआ, तथा उच्च शिक्षा काशी में... उन्होंने पहले अध्यापन किया, फिर आकाशवाणी से जुड़े... बाद में वह 'दिनमान के सहायक सम्पादक बने... श्री सक्सेना तीसरा सप्तक के कवियों में प्रमुख हैं, तथा इनकी रचनाएं रूसी, जर्मन, पोलिश तथा चेक भाषाओं में अनूदित हैं... इनके मुख्य काव्य-संग्रह हैं : 'काठ की घंटियां', 'बांस का पुल', 'गर्म हवाएं', 'कुआनो नदी', 'जंगल का दर्द', 'एक सूनी नाव', 'खूंटियों पर टंगे लोग' तथा 'कोई मेरे साथ चले'... इन्होंने उपन्यास, कहानी, गीत-नाटिका तथा बाल-काव्य भी लिखे हैं, तथा श्री सक्सेना को साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था...


ब्नबतूता... पहन के जूता...
निकल पड़े तूफान में...
थोड़ी हवा नाक में घुस गई...
घुस गई थोड़ी कान में...

कभी नाक को... कभी कान को...
मलते इब्नबतूता...
इसी बीच में निकल पड़ा...
उनके पैरों का जूता...

उड़ते-उड़ते जूता उनका...
जा पहुंचा जापान में...
इब्नबतूता खड़े रह गए...
मोची की दुकान में...
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