विशेष नोट : मेरी बेटी निष्ठा को अपने सिर पर दुपट्टा ओढ़ने या साड़ी लपेटने का काफी शौक है, जबकि वह अभी तीन साल की भी नहीं हुई है... आज अचानक कविताकोश.ओआरजी पर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की लिखी यह कविता दिखी, तो अपने ब्लॉग पर ले आया हूं...
इतनी जल्दी क्या है बिटिया,
सिर पर पल्लू लाने की...
अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों,
के संग समय बिताने की...
मम्मी-पापा तुम्हें देखकर,
मन ही मन हर्षाते हैं...
जब वे नन्ही-सी बेटी की,
छवि आंखों में पाते हैं...
जब आएगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें...
तन-मन-धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें...
अम्मा-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो...
घर-आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो...
सबकी आंखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो...
प्राची, तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी-सी मुनिया हो...
सिर पर पल्लू लाने की...
अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों,
के संग समय बिताने की...
मम्मी-पापा तुम्हें देखकर,
मन ही मन हर्षाते हैं...
जब वे नन्ही-सी बेटी की,
छवि आंखों में पाते हैं...
जब आएगा समय सुहाना,
देंगे हम उपहार तुम्हें...
तन-मन-धन से सब सौगातें,
देंगे बारम्बार तुम्हें...
अम्मा-बाबा की प्यारी,
तुम सबकी राजदुलारी हो...
घर-आंगन की बगिया की,
तुम मनमोहक फुलवारी हो...
सबकी आंखों में बसती हो,
इस घर की तुम दुनिया हो...
प्राची, तुम हो बड़ी सलोनी,
इक प्यारी-सी मुनिया हो...