Thursday, September 10, 2009

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला... (बशीर बद्र)

विशेष नोट : आजकल के शायरों में बशीर बद्र की कलम मुझे पसंद आती है... सो, उनकी यह ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूं...

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला,
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला...

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे,
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला...

तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था,
फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला...

ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने,
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला...

बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी,
वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला...

यूं ही बेसबब न फिरा करो... (बशीर बद्र)

विशेष नोट : आजकल के शायरों में बशीर बद्र की कलम मुझे पसंद आती है... सो, उनकी यह ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूं...

यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो...

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो...

अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा,
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो...

मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां,
जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो...

ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है,
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो...

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा... (बशीर बद्र)

विशेष नोट : आजकल के शायरों में बशीर बद्र की कलम मुझे पसंद आती है... सो, उनकी यह ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूं...

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा,
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा...

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा...

कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा...

मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा...

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां,
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा...
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