विशेष नोट : आजकल के शायरों में बशीर बद्र की कलम मुझे पसंद आती है... सो, उनकी यह ग़ज़ल आपकी नज़र कर रहा हूं...
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा,
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा...
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा...
कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा...
मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा...
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां,
मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Thursday, September 10, 2009
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा... (बशीर बद्र)
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