Wednesday, March 13, 2013

गांव गया था, गांव से भागा... (कैलाश गौतम)

विशेष नोट : आज मेरे एक मित्र ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर यह कविता लगाई, और मुझे इतनी अच्छी लगी कि तुरन्त ही गूगल किया, और पाया कि यह स्वर्गीय श्री कैलाश गौतम द्वारा रचित है... वेबसाइट अनुभूति पर प्रकाशित इसी कविता के साथ मौजूद कवि परिचय के अनुसार श्री गौतम का जन्म 8 जनवरी, 1944 को उत्तर प्रदेश के जनपद वाराणसी (अब चंदौली) में हुआ था... एमए, बीएड तक शिक्षा प्रप्त करने वाले श्री गौतम का देहावसान वर्ष 2006 में 9 दिसम्बर को हुआ था... उनकी प्रकाशित रचनाओं में 'सीली माचिस की तीलियां' (कविता संग्रह), 'जोड़ा ताल' (कविता संग्रह), 'तीन चौथाई आंश' (भोजपुरी कविता संग्रह) तथा 'सिर पर आग' (गीत संग्रह) शामिल हैं, जबकि उनकी शीघ्र प्रकाश्य रचनाओं के रूप में 'बिना कान का आदमी' (दोहा संकलन), 'चिन्ता नए जूते की' (निबंध-संग्रह), 'आदिम राग' (गीत-संग्रह) तथा 'तंबुओं का शहर' (उपन्यास) की प्रतीक्षा है...


गांव गया था, गांव से भागा...
रामराज का हाल देखकर,
पंचायत की चाल देखकर...
आंगन में दीवाल देखकर,
सिर पर आती डाल देखकर...
नदी का पानी लाल देखकर,
और आंख में बाल देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
सरकारी स्कीम देखकर,
बालू में से क्रीम देखकर...
देह बनाती टीम देखकर,
हवा में उड़ता भीम देखकर...
सौ-सौ नीम हकीम देखकर,
गिरवी राम-रहीम देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
जला हुआ खलिहान देखकर,
नेता का दालान देखकर...
मुस्काता शैतान देखकर,
घिघियाता इंसान देखकर...
कहीं नहीं ईमान देखकर,
बोझ हुआ मेहमान देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
नए धनी का रंग देखकर,
रंग हुआ बदरंग देखकर...
बातचीत का ढंग देखकर,
कुएं-कुएं में भंग देखकर...
झूठी शान उमंग देखकर,
पुलिस चोर के संग देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
बिना टिकट बारात देखकर,
टाट देखकर, भात देखकर...
वही ढाक के पात देखकर,
पोखर में नवजात देखकर...
पड़ी पेट पर लात देखकर,
मैं अपनी औकात देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
नए-नए हथियार देखकर,
लहू-लहू त्योहार देखकर...
झूठ की जै-जैकार देखकर,
सच पर पड़ती मार देखकर...
भगतिन का शृंगार देखकर,
गिरी व्यास की लार देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...

गांव गया था, गांव से भागा...
मुठ्ठी में कानून देखकर,
किचकिच दोनों जून देखकर...
सिर पर चढ़ा जुनून देखकर,
गंजे को नाखून देखकर...
उजबक अफ़लातून देखकर,
पंडित का सैलून देखकर...
गांव गया था, गांव से भागा...
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