Thursday, December 10, 2009

मेरे पास आओ, मेरे दोस्तों, एक किस्सा सुनो... (मिस्टर नटवरलाल)

विशेष नोट : यह गीत मुझे बचपन में बेहद अच्छा लगता था, सो, सोचता हूं, बेटे के लिए याद कर लूं...

फिल्म - मिस्टर नटवरलाल
पार्श्वगायक - अमिताभ बच्चन (यह पार्श्वगायक के रूप में अमिताभ बच्चन का पहला प्रयास था...)
संगीतकार - राजेश रोशन
गीतकार - आनन्द बख्शी

आओ बच्चों, आज तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं मैं...
शेर की कहानी सुनोगे... आजा मुन्ना हम्म...

मेरे पास आओ, मेरे दोस्तों, एक किस्सा सुनो...
मेरे पास आओ, मेरे दोस्तों, एक किस्सा सुनो...

कई साल पहले की ये बात है...

बोलो न... चुप क्यों हो गए...

भयानक अन्धेरी सियाह रात में,
लिए अपनी बन्दूक मैं हाथ में...
घने जंगलों से गुजरता हुआ कहीं जा रहा था...
घने जंगलों से गुजरता हुआ कहीं जा रहा था...
जा रहा था...
नहीं... आ रहा था...
नहीं... जा रहा था...

ओफ्फो... आगे भी तो बोलो न...

बताता हूं... बताता हूं...
नहीं भूलती, उफ्फ, वो जंगल की रात...
मुझे याद है, वो थी मंगल की रात...
चला जा रहा था, मैं डरता हुआ...
हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ...

बोलो हनुमान की जय...
हो जय जय, बजरंग बली की जय...
हां बोलो, हनुमान की जय...
हो जय जय, बजरंग बली की जय...

घड़ी थी, अन्धेरा मगर सख्त था...
कोई दस-सवा दस का वक्त था...
लरजता था कोयल की भी कूक से...
बुरा हाल हुआ उसपे भूख से...
लगा तोड़ने एक बेरी से बेर...
मेरे सामने आ गया एक शेर...

मेरी घिग्घी बंध गई, नजर फिर गई...
फिर तो बन्दूक भी हाथ से गिर गई...
मैं लपका... वो झपटा...
मैं ऊपर, वो नीचे...
वो आगे... मैं पीछे...
मैं पेड़ पे, वो नीचे...
अरे, बचाओ... अरे, बचाओ...
मैं डाल-डाल, वो पात-पात...
मैं पसीना, वो बाग-बाग...
मैं सुर में, वो ताल में...
ये जंगल, पाताल में...
बचाओ... बचाओ...
अरे, भागो रे भागो...

फिर क्या हुआ...

खुदा की कसम, मज़ा आ गया...
मुझे मारकर, बेसरम खा गया...
खा गया... लेकिन आप तो ज़िन्दा हैं...
अरे, ये जीना भी कोई जीना है लल्लू...
हम्म...
ल... ल... ल... र... ल... ल...

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