Thursday, December 10, 2009

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं... (लीडर)

विशेष नोट : भजनों और संस्कृत श्लोकों के अतिरिक्त जो मुझे बेहद पसंद है, वह देशभक्ति गीत हैं... और मुझे खुशी होती है कि मैं उन लोगों में से हूं, जो इन गीतों को सिर्फ 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) पर ही नहीं, सारे साल लगभग रोज़ ही सुनता हूं... सो, एक ऐसा ही गीत आपके लिए भी...

फिल्म - लीडर
पार्श्वगायक - मोहम्मद रफी
संगीतकार - नौशाद
गीतकार - शकील बदायूंनी

अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हमने सदियों में ये आज़ादी की नेमत पाई है,
हमने ये नेमत पाई है...
सैकड़ों कुर्बानियां देकर ये दौलत पाई है,
हमने ये दौलत पाई है...
मुस्कुराकर खाई हैं सीनों पे अपने गोलियां,
सीनों पे अपने गोलियां...
कितने वीरानों से गुज़रे हैं तो जन्नत पाई है...
ख़ाक में हम अपनी इज़्ज़त को मिला सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

क्या चलेगी ज़ुल्म की, अहले वफ़ा के सामने,
अहले वफ़ा के सामने...
आ नहीं सकता कोई, शोला हवा के सामने,
शोला हवा के सामने...
लाख फ़ौजें ले के आए, अमन का दुश्मन कोई,
रुक नहीं सकता हमारी एकता के सामने...
हम वो पत्थर हैं जिसे, दुश्मन हिला सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

वक़्त की आवाज़ के, हम साथ चलते जाएंगे,
हम साथ चलते जाएंगे...
हर क़दम पर ज़िन्दगी का, रुख बदलते जाएंगे,
हम रुख़ बदलते जाएंगे...
’गर वतन में भी मिलेगा, कोई गद्दारे वतन,
जो कोई गद्दारे वतन...
अपनी ताकत से हम उसका सर कुचलते जाएंगे...
एक धोखा खा चुके हैं, और खा सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

हम वतन के नौजवां हैं, हमसे जो टकराएगा,
हमसे जो टकराएगा...
वो हमारी ठोकरों से ख़ाक में मिल जाएगा,
ख़ाक में मिल जाएगा...
वक़्त के तूफ़ान में बह जाएंगे ज़ुल्मो-सितम...
आसमां पर ये तिरंगा उम्र भर लहराएगा,
उम्र भर लहराएगा...
जो सबक बापू ने सिखलाया, भुला सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं,
सर कटा सकते हैं लेकिन, सर झुका सकते नहीं...
अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं...

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