विशेष नोट : हाल ही में मेरी मौसी मेरे बेटे को कुछ कविताएं सिखा रही थीं, सो, अपनी पढ़ी कुछ कविताएं याद हो आईं... द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित यह कविता उन्हीं में से एक है...
कौन सिखाता है चिड़ियों को, चीं-चीं, चीं-चीं करना...?
कौन सिखाता फुदक-फुदककर, उनको चलना-फिरना...?
कौन सिखाता फुर से उड़ना, दाने चुग-चुग खाना...?
कौन सिखाता तिनके ला-लाकर घोंसले बनाना...?
कौन सिखाता है बच्चों का, लालन-पालन उनको...?
मां का प्यार, दुलार, चौकसी कौन सिखाता उनको...?
कुदरत का यह खेल, वही हम सबको, सब कुछ देती...
किन्तु नहीं बदले में हमसे, वह कुछ भी है लेती...
हम सब उसके अंश कि जैसे तरु-पशु–पक्षी सारे...
हम सब उसके वंशज, जैसे सूरज-चांद-सितारे...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Wednesday, December 02, 2009
कौन सिखाता है चिड़ियों को... (द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी)
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