विशेष नोट : यह अमर गीत कवि प्रदीप (वास्तविक नाम - रामचंद्र द्विवेदी) ने लिखा था, और भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए भारतीय वीरों को समर्पित इस गीत को संगीतबद्ध किया था सी रामचंद्र ने... भारतकोकिला कही जाने वाली लता मंगेशकर ने वर्ष 1963 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के रामलीला मैदान में इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में गाया था... विशेष बात यह है कि इस गीत से जुड़े किसी भी कलाकार या तकनीशियन (गायक, लेखक, संगीत निर्देशक, वाद्ययंत्र बजाने वालों, रिकॉर्डिंग स्टूडियो, साउंड रिकॉर्डिस्ट आदि) ने कोई पारिश्रमिक नहीं लिया था, और बाद में लेखक कवि प्रदीप ने इस गीत की रॉयल्टी भी 'वार विडोज़ फंड' (War Widow Fund) को दे दी थी...
ऐ मेरे वतन के लोगों,
तुम ख़ूब लगा लो नारा...
ये शुभ दिन है हम सबका,
लहरा लो तिरंगा प्यारा...
पर मत भूलो सीमा पर,
वीरों ने हैं प्राण गंवाए...
कुछ याद उन्हें भी कर लो...
कुछ याद उन्हें भी कर लो...
जो लौटके घर न आए...
जो लौटके घर न आए...
ऐ मेरे वतन के लोगों,
ज़रा आंख में भर लो पानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
जब घायल हुआ हिमालय,
ख़तरे में पड़ी आज़ादी...
जब तक थी सांस लड़े वो,
जब तक थी सांस लड़े वो,
फिर अपनी लाश बिछा दी...
संगीन पे धरकर माथा,
सो गए अमर बलिदानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
जब देश में थी दिवाली,
वो खेल रहे थे होली...
जब हम बैठे थे घरों में,
जब हम बैठे थे घरों में,
वो झेल रहे थे गोली...
थे धन्य जवान वो अपने,
थी धन्य वो उनकी जवानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
कोई सिख, कोई जाट-मराठा,
कोई सिख, कोई जाट-मराठा,
कोई गुरखा कोई मदरासी...
कोई गुरखा कोई मदरासी...
सरहद पे मरनेवाला,
सरहद पे मरनेवाला,
हर वीर था भारतवासी...
जो खून गिरा पर्वत पर,
वो खून था हिन्दुस्तानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
थी खून से लथपथ काया,
फिर भी बंदूक उठाके...
दस-दस को एक ने मारा,
फिर गिर गए होश गंवा के...
जब अंत समय आया तो,
कह गए के अब मरते हैं...
खुश रहना, देश के प्यारों,
अब हम तो सफर करते हैं...
अब हम तो सफर करते हैं...
क्या लोग थे वो दीवाने,
क्या लोग थे वो अभिमानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
तुम भूल न जाओ उनको,
इसलिए कही ये कहानी...
जो शहीद हुए हैं उनकी,
ज़रा याद करो कुर्बानी...
जय हिन्द, जय हिन्द की सेना...
जय हिन्द, जय हिन्द की सेना...
जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Monday, December 28, 2009
ऐ मेरे वतन के लोगों...
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