Tuesday, June 28, 2011

फूलों के रंग से... (प्रेम पुजारी)

विशेष नोट : बेहद खूबसूरत कविता, जो हमेशा से मुझे बेहद पसंद रही है... मन में पगे प्रेम की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति यदा-कदा ही देखने-सुनने को मिलती है, सो, आज आप सब भी इसका आनंद लें...

फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
गीतकार : नीरज
संगीतकार : सचिनदेव बर्मन
पार्श्वगायक : किशोर कुमार

फूलों के रंग से, दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज़ पाती...
कैसे बताऊं, किस-किस तरह से, पल-पल मुझे तू सताती...
तेरे ही सपने, लेकर के सोया, तेरी ही यादों में जागा...
तेरे खयालों में, उलझा रहा यूं, जैसे कि माला में धागा...
हां... बादल-बिजली, चन्दन-पानी जैसा अपना प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...
हां... इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...

सांसों की सरगम, धड़कन की बीना, सपनों की गीतांजलि तू...
मन की गली में, महके जो हरदम, ऐसी जूही की कली तू...
छोटा सफ़र हो, लम्बा सफ़र हो, सूनी डगर हो या मेला...
याद तू आए, मन हो जाए, भीड़ के बीच अकेला...
हां... बादल-बिजली, चन्दन-पानी जैसा अपना प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...
हां... इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...

पूरब हो पश्चिम, उत्तर हो दख्खिन, तू हर जगह मुस्कुराए...
जितना ही जाऊं, मैं दूर तुझसे, उतनी ही तू पास आए...
आंधी ने रोका, पानी ने टोका, दुनिया ने हंसकर पुकारा...
तस्वीर तेरी, लेकिन लिए मैं, कर आया सबसे किनारा...
हां... बादल-बिजली, चन्दन-पानी जैसा अपना प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...
हां... इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार...
लेना होगा, जनम हमें, कई-कई बार...

Tuesday, June 21, 2011

जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो... (संबंध)

विशेष नोट : आज सुबह-सुबह मेरे फुफेरे भाई ने अपने फेसबुक पर इक गीत के मुखड़े से स्टेटस अपडेट किया... बस, याद आ गया, कितना अच्छा लगता था यह गीत स्कूल के दिनों में... कवि प्रदीप के लिखे बेहद खूबसूरत बोल, और सचमुच हिलाकर रख देने वाली आवाज़ महेन्द्र कपूर की... सो, आप सब भी आनंद लीजिए...

फिल्म : सम्बन्ध (1968)
संगीतकार : ओपी नय्यर
पार्श्वगायक : महेन्द्र कपूर, हेमंत कुमार
गीतकार : कवि प्रदीप (वास्तविक नाम - रामचंद्र द्विवेदी)

किस बाग़ में मैं जन्मा, खेला, मेरा रोम-रोम यह जानता है...
तुम भूल गए शायद माली, पर फूल तुम्हें पहचानता है...

जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो...
इक कर्ज़ मांगता हूं, बचपन उधार दे दो...

तुम छोड़ गए थे जिसको, इक धूल-भरे रस्ते में,
वो फूल आज रोता है, इक अमीर के गुलदस्ते में...
मेरा दिल तड़प रहा है, मुझे फिर दुलार दे दो...
इक कर्ज़ मांगता हूं, बचपन उधार दे दो...
जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो...

मेरी उदास आंखों को, है याद वो वक्त सलोना,
जब झूला था बांहों में, मैं बनके तुम्हारा खिलौना...
मेरी वो खुशी की दुनिया, फिर एक बार दे दो...
इक कर्ज़ मांगता हूं, बचपन उधार दे दो...
जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो...

तुम्हें देख नाच उठते हैं, मेरे पिछले दिन वो सुनहरे,
और दूर कहीं दिखते हैं, मुझसे बिछड़े दो चेहरे...
जिसे सुनके घर वो लौटे, मुझे वो पुकार दे दो...
इक कर्ज़ मांगता हूं, बचपन उधार दे दो...
जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो...

Saturday, June 04, 2011

प्यारी निष्ठा... (रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')

विशेष नोट : श्री रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' द्वारा उनकी पोती प्राची के लिए रचित कविता 'प्यारी प्राची' को मैंने पिछले वर्ष अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया था, और बेटी के प्यार में पड़कर उसमें उनकी पोती का नाम क्षमाप्रार्थना के साथ अपनी बेटी के नाम से बदल दिया था... आज शास्त्री जी ने मेरी बेटी के लिए नई कविता लिखकर प्रेषित की है, उनका हार्दिक धन्यवाद, एक पिता के रूप में... आप सब भी पढ़कर आनंद लें... वैसे इस कविता के प्रकाशन के साथ ही उनकी मूल कविता में उनकी पोती प्राची का ही नाम लगा दिया है...


प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी,
बिटिया तुम हो कितनी प्यारी...
मोहक है मुस्कान तुम्हारी,
घर-भर की तुम राजदुलारी...

नए-नए परिधान पहनकर,
सबको बहुत लुभाती हो...
अपने मन का गाना सुनकर,
ठुमके खूब लगाती हो...

निष्ठा तुम प्राची जैसी ही,
चंचल-नटखट बच्ची हो...
मन में मैल नहीं रखती हो,
देवी जैसी सच्ची हो...

दिन-भर के कामों से थककर,
जब घर वापिस आता हूं...
तुमसे बातें करके सारे,
कष्ट भूल मैं जाता हूं...

मेरे घर-आंगन की तुम तो,
नन्हीं कलिका हो सुरभित...
हंसते-गाते देख तुम्हें,
मन सबका हो जाता हर्षित...

Friday, June 03, 2011

छुट्टियों में दिल्ली की सैर... (विवेक रस्तोगी)

विशेष नोट : गर्मियां आईं, स्कूलों में छुट्टियां हुईं, और बच्चे दिल्ली पहुंचे, यह तो हर बार होता ही है... हर बार उन्हें कुछ न कुछ नया सिखाता भी हूं, सो, इस बार भी एक कविता लिख दी है उनके लिए... आप लोग भी मुलाहिज़ा फरमाएं...
 

छुट्टी थी जब स्कूल में अपने, सब कुछ हुआ था बंद,
दिल्ली जाकर मैं और निष्ठा, रहे थे सबके संग...

दादा-दादी, चाचा-चाची, सबका मिला था प्यार,
रोज़ किया था हल्ला-गुल्ला, रोज़ ही चीख-पुकार...

सॉफ्टी थी, और शरबत भी था, था रबड़ी का दोना,
सबके संग खाया था सब कुछ, कोई न रोना-धोना...

लोटस टेम्पल, लालकिला भी देखा था इस बार,
कुतुब दिखाया पापा ने, दिलवाई खिलौना कार...

चिड़ियाघर में सभी जानवर, देखे हमने मिलकर,
शेर भी देखा, हाथी भी था, और था मोटा बंदर...

मैट्रो की भी सैर कराई, बहुत मज़ा था आया,
इंडिया गेट पर बोट में बैठे, सबका मन हर्षाया...

पार्क में लेकर गई थीं मम्मी, ढेरों थे वहां झूले,
वहां किया था हल्ला जमकर, अब तक हम न भूले...

कोई नहीं थी चिन्ता हमको, कोई किया न काम,
सारे दिन करते थे मस्ती, खेल-कूद, आराम...

चिड़िया... (श्यामसुन्दर अग्रवाल)

विशेष नोट : हर साल की तरह छुट्टियों में बच्चे इस बार भी मेरे पास दिल्ली पहुंच चुके हैं, सो, उन्हें कुछ नया सिखाने की मेरी कवायद भी हमेशा की तरह शुरू हो गई है, जिसका परिणाम श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल द्वारा रचित इस शिक्षाप्रद बाल कविता के रूप में आपके सामने है... भारतीय भाषाओं में रचित काव्य के संकलन के लिए प्रसिद्ध www.kavitakosh.org के अनुसार श्री अग्रवाल का जन्म पंजाब के कोटकपुरा में हुआ था... श्री अग्रवाल हिन्दी और पंजाबी भाषा में कविताएं रचने के अतिरिक्त कहानियां और लघुकथाएं लिखने, उनके सम्पादन तथा अनुवाद करने के लिए भी जाने जाते हैं... श्री अग्रवाल पिछले 21 वर्ष से लघुकथाओं की पंजाबी त्रैमासिक पत्रिका 'मिन्नी' के संयुक्त सम्पादक भी हैं... 
 
 
 सुबह-सवेरे आती चिड़िया,
आकर मुझे जगाती चिड़िया...
ऊपर बैठ मुंडेर पर,
चीं-चीं, चूं-चूं गाती चिड़िया...

जाना है, नहीं स्कूल उसे,
न ही दफ़्तर जाती चिड़िया...
फिर भी सदा समय से आती,
आलस नहीं दिखाती चिड़िया...

थोड़ा-सा चुग्गा लेकर भी,
दिन-भर पंख फैलाती चिड़िया...
इससे सेहत ठीक है रखती,
नहीं दवाई खाती चिड़िया...

छोटी-सी है, फिर भी बच्चों,
बातें कई सिखाती चिड़िया...
रखो सदा ध्यान समय का,
सबको पाठ पढ़ाती चिड़िया...
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...