tag:blogger.com,1999:blog-34828107097481081832024-03-14T01:22:24.084+05:30कुछ पुरानी यादें... (कविताएं, गीत, भजन, प्रार्थनाएं, श्लोक, अनूदित रचनाएं)बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.comBlogger134125tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-31157051323006335642014-04-28T12:17:00.001+05:302014-04-28T12:18:24.596+05:30दहेज की बारात (काका हाथरसी)
विशेष नोट : यह बात आप सब लोग कई बार पढ़ चुके हैं कि काका हाथरसी बहुत छोटी-सी आयु (मेरी ही आयु की बात कर रहा हूं) से मेरे पसंदीदा हास्य कवि रहे हैं... उनकी यह कविता मैंने बचपन में अपनी मौसी के मुंह से सुनी थी, जिन्हें यह बेहद पसंद थी... मुझे भी पसंद आई, लेकिन कहीं लिखकर रखी न होने के कारण कभी आप लोगों को नहीं पढ़ा पाया... अभी हाल ही में मौसी ने ही फरमाइश की, कहीं से भी लाकर दे, सो, इंटरनेट पर Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-37573862548320258452013-08-20T10:44:00.001+05:302013-08-20T10:48:48.950+05:30रक्षाबंधन पर विशेष प्रस्तुति - भाई-बहन (गोपाल सिंह नेपाली)
विशेष नोट : कविताकोश.ओआरजी पर गोपाल सिंह नेपाली द्वारा रचित यह कविता 'भाई-बहन' मिली, सो, रक्षाबंधन के पर्व पर सभी भाई-बहनों के लिए ले आया हूं...
तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूं,तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बनूं,आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूं, लाल बनूं,तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूं,यहां न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,तू आंगन की Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-62428832640804192492013-05-15T16:25:00.002+05:302013-05-15T16:26:38.706+05:30हे दयालु नेता... (अल्हड़ बीकानेरी)
विशेष नोट : बचपन में जिन हास्य कवियों को सुना और पसंद किया, उनमें से एक बड़ा नाम है अल्हड़ बीकानेरी जी का... आज अचानक मेरे साथी सुनील कुमार सिरीज ने इनका ज़िक्र किया, और काव्यांचल.कॉम से ढूंढकर उनकी यह कविता फेसबुक पर डाली... मुझे भी अच्छी लगी, सो, आप लोगों के लिए भी ले आया हूं... आनन्द लें... विकीपीडिया के मुताबिक श्री अल्हड़ बीकानेरी का जन्म श्यामलाल शर्मा के रूप में हरियाणा के जिला रेवाड़ी Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-9049038099861177842013-05-01T19:54:00.000+05:302013-05-01T19:56:24.571+05:30इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं... (ओम प्रकाश 'आदित्य')
विशेष नोट : बचपन में दूरदर्शन पर हास्य कवि सम्मेलनों को बहुत मनोयोग से देखता था, और तभी परिचय हुआ था, ओम प्रकाश 'आदित्य' जी के नाम से... हाल ही में उनकी यह कविता मुझे कविताकोश.ओआरजी पर मिली, सो, आप लोगों के लिए ले आया हूं...
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं...जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं...गधे हंस रहे, आदमी रो रहा है...हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है...जवानी का आलम गधों के लिए Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-18519805744170499852013-03-13T13:13:00.004+05:302013-03-13T13:20:33.290+05:30गांव गया था, गांव से भागा... (कैलाश गौतम)
विशेष नोट : आज मेरे एक मित्र ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर यह कविता लगाई, और मुझे इतनी अच्छी लगी कि तुरन्त ही गूगल किया, और पाया कि यह स्वर्गीय श्री कैलाश गौतम द्वारा रचित है... वेबसाइट अनुभूति पर प्रकाशित इसी कविता के साथ मौजूद कवि परिचय के अनुसार श्री गौतम का जन्म 8 जनवरी, 1944 को उत्तर प्रदेश के जनपद वाराणसी (अब चंदौली) में हुआ था... एमए, बीएड तक शिक्षा प्रप्त करने वाले श्री गौतम का देहावसान Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-21428965646677947072012-11-07T16:00:00.000+05:302012-11-07T16:02:43.200+05:30पढ़क्कू की सूझ... (रामधारी सिंह 'दिनकर')
विशेष नोट : बचपन में पाठ्यपुस्तकों में जिन कवियों को पढ़ाया गया, उनमें रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम प्रमुख है... कविताकोश.ओआरजी (http://www.KavitaKosh.org) पर इस कविता के साथ प्रकाशित कवि परिचय के अनुसार 23 सितम्बर, 1908 को बिहार में बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में जन्मे श्री दिनकर ने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की, तथा साहित्य के रूप में इन्होंने Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-91102584955495929332012-04-02T13:15:00.001+05:302012-07-20T13:54:35.614+05:30क-ख-ग की कविता... (विवेक रस्तोगी)
विशेष नोट : फेसबुक पर एक मित्र के मित्र श्री रत्नेश त्रिपाठी ने आज बच्चों के लिए हिन्दी का कायदा बनाने की कोशिश की, और दो लाइनें लिखकर भेजीं... बस, फिर क्या था, मेरे खुराफाती दिमाग में कीड़ा कुलबुलाया, और मैंने अपनी तरफ से पूरा कर डाला... बताइए, कैसा रहा...?
सबसे पहले मुलाहिज़ा फरमाएं, ये है रत्नेश जी की कविता...
क की कोयल कूक रही है...
ख खरगोश खड़ा है...
ग की गइया बैठी भइया...
घ क घड़ा भरा है.Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-90742335073386961102012-02-22T16:55:00.002+05:302012-02-22T16:56:01.111+05:30आधुनिक काल के दोहे...
विशेष नोट : ये दोहे आज फेसबुक पर मिले, लेकिन वहां स्पष्ट नहीं था कि यह मेरे पसंदीदा हास्य कवियों में से एक हुल्लड़ मुरादाबादी के लिखे हुए हैं अथवा नहीं... हालांकि दोहों से साफ लगता है कि ये उन्हीं की रचनाएं हैं... बहरहाल, आप लोग भी आनन्द लें...कर्ज़ा देता मित्र को, वह मूर्ख कहलाए,महामूर्ख वह यार है, जो पैसे लौटाए...बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय,पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय...गुरु Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-70850059192780794602012-02-16T23:04:00.002+05:302012-02-16T23:05:18.320+05:30इधर देखते हैं, उधर देखते हैं... (राधेश्याम रस्तोगी 'आरिफ़')
विशेष नोट : यह ग़ज़ल मेरे ताऊजी, श्री राधेश्याम रस्तोगी 'आरिफ़' की कलम से निकली थी, और उनकी शाया हुई किताब 'तफ़सीर-ए-दिल' का हिस्सा है... आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं...
इधर देखते हैं, उधर देखते हैं,
तसव्वुर [1] में तेरा ही घर देखते हैं...
नुमायां जुनूं का, असर देखते हैं,
तुझे जबकि रश्क-ए-क़मर देखते हैं...
सर-ए-शाम, जब आप तशरीफ़ लाए,
सियाही में नूर-ए-सहर [2] देखते हैं...
मरीज़-ए-मुहब्बत Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-50500881738278118502011-12-05T16:28:00.001+05:302012-02-07T12:14:32.121+05:30तब न समझी मां, बाप, अध्यापक की कीमत... (विवेक रस्तोगी)
विशेष नोट : अगली पीढ़ी को कुछ सिखाने के लिए बिल्कुल यूं ही लिखी है यह अकविता... दरअसल, दो दिन पहले अपने पुराने स्कूल में गया था, लगभग 24 साल बाद, और वहां एक एहसास बेहद सुकून देने वाला था... मां-बाप की तरह अध्यापक भी उतना ही खुश होते हैं, बच्चे की कामयाबी देखकर... अपनी मां, पिता और सभी अध्यापकों को समर्पित कर रहा हूं...आज मैं कामयाब हूं... नामी हूं... मशहूर हूं...शायद ऐसा ही हूं... शायद ऐसा नहींVivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-59661126526051596052011-11-08T11:23:00.002+05:302012-02-07T12:14:32.167+05:30स्वदेश के प्रति... (सुभद्राकुमारी चौहान)
विशेष नोट : आदरणीय कवयित्री सुश्री सुभद्राकुमारी चौहान की यह रचना आज कविताकोश.ओआरजी पर दिखी, अच्छी लगा, सो, आप सबके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हूं...
आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूं तेरा...
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा...
आ, उस बालक के समान,
जो है गुरुता का अधिकारी...
आ, उस युवक-वीर सा जिसको,
विपदाएं ही हैं प्यारी...
आ, उस सेवक के समान तू,
विनय-शील अनुगामी सा...
अथवा आVivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-17979214432209619222011-10-25T15:42:00.001+05:302012-02-07T12:14:31.556+05:30दीपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएं...
पटाखों के कानफोड़ धमाकों, फुलझड़ियों की सतरंगी झिलमिलाती छटाओं, और अंतरतम को मिठास से भर देने वाली मिठाइयों के बीच धन-धान्य के दीप, ज्ञान की मोमबत्तियां, सुख के उजाले और समृद्धि की किरणें इस दिवाली पर रोशन कर दें दुःखों की अमावस्या को, आपके जीवन में...
दीपावली के इस पावन पर्व पर निष्ठा, सार्थक, हेमा तथा विवेक की ओर से हार्दिक मंगलकामनाएं...
Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-35917658594148081822011-09-29T13:13:00.000+05:302012-02-07T12:14:31.856+05:30दुर्गा के 108 नाम - दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) - अनुवाद सहित...
विशेष नोट : शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा की आराधना करने हेतु दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का विशेष महत्व होता है... इसी कारण सभी हिन्दी ब्लॉगप्रेमियों के लिए विकीपीडिया से साभार लेकर स्तोत्र तथा http://hi.bharatdiscovery.org से साभार लेकर इसका अर्थ प्रकाशित कर रहा हूं...
॥ दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) ॥
॥ ॐ ॥
॥ श्री दुर्गायै नमः ॥
॥ श्री Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-81712162194257402352011-09-08T13:33:00.001+05:302012-02-07T12:14:32.459+05:30सूरज, चांद और अखबार... (विवेक रस्तोगी)
विशेष नोट : मेरे विचार में छोटे-छोटे बच्चों को आसपास की चीज़ों के बारे में जानकारी देने और सिखाने के लिए
कविताएं बेहतरीन ज़रिया होती हैं... छोटी-छोटी लयबद्ध कविताएं बच्चे स्वभावतः
जल्दी याद कर लेते हैं, सो, इस बार प्रयास किया है, तीन छोटी-छोटी कविताएं
लिखकर, उनके माध्यम से सूरज, चांद और अखबार के बारे में सिखाने का...
सूरज
दिन भर देता हमें रोशनी,
सबको मार्ग दिखाता है...
शाम ढले यह Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-19621597871058108622011-09-02T15:08:00.000+05:302012-02-07T12:14:31.593+05:30आज सड़कों पर... (दुष्यंत कुमार)विशेष नोट : 'हो गई है पीर पर्वत सी...' के अतिरिक्त दुष्यंत कुमार की यह कविता 'आज सड़कों पर...' भी मुझे काफी पसंद है... सो, अब आप लोग भी इसे पढ़ें...
दुष्यंत कुमार (1 सितंबर, 1933 - 30 दिसंबर, 1975)
आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अंधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख...
एक दरिया है यहां पर, दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख, पतवारें न देख...
अब यकीनन ठोस है धरती, Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-50119569666060606612011-08-19T10:03:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.109+05:30समर शेष है... (रामधारी सिंह 'दिनकर')विशेष नोट : बचपन में पाठ्यपुस्तकों में जिन कवियों को पढ़ाया गया, उनमें रामधारी सिंह 'दिनकर' का नाम प्रमुख है... कविताकोश.ओआरजी (http://www.KavitaKosh.org) पर इस कविता के साथ प्रकाशित कवि परिचय के अनुसार 23 सितम्बर, 1908 को बिहार में बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में जन्मे श्री दिनकर ने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की, तथा साहित्य के रूप में इन्होंने Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-78406180999922228372011-08-18T11:33:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.447+05:30मुसाफिर हूं यारों... (परिचय)विशेष नोट : यह गीत हमेशा से मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में रहा है, जिसके दो कारण हैं... एक, यह मेरे पसंदीदा पार्श्वगायक की आवाज़ में है, और दूसरी वजह इसके रचयिता गुलज़ार हैं, जिनका शायद ही कोई गीत होगा, जो मुझे पसंद न आया हो... सो, आज उनकी 75वीं वर्षगांठ पर उनका लिखा यह गीत आप सबके लिए...फिल्म : परिचय (1972)संगीतकार : राहुल देव बर्मन (आरडी बर्मन, पंचम)गीतकार : गुलज़ार (सम्पूरण सिंह कालरा)Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-86149724819885139242011-08-10T15:04:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.544+05:30कौन क्या-क्या खाता है...? (काका हाथरसी)विशेष नोट : काका हाथरसी बहुत छोटी-सी आयु (मेरी ही आयु की बात कर रहा हूं) से मेरे पसंदीदा हास्य कवि रहे हैं... आकाशवाणी के कार्यक्रमों को सुनने वाले जानते हैं कि उनकी कुण्डलियां बेहद प्रसिद्ध रही हैं... इन्हीं पर आधारित उनकी लिखी एक कविता आप सबके लिए kavitakosh.org से लेकर आया हूं...
खान-पान की कृपा से, तोंद हो गई गोल,
रोगी खाते औषधि, लड्डू खाएं किलोल,
लड्डू खाएं किलोल, जपें खाने की माला,
ऊंची Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-73235354874969791952011-08-10T14:51:00.002+05:302012-02-07T12:14:32.367+05:30चालीसवां राष्ट्रीय भ्रष्टाचार महोत्सव (अशोक चक्रधर)विशेष नोट : मेरे पसंदीदा हास्य कवियों की सूची में एक नाम बेहद अच्छे व्यंग्यकार अशोक चक्रधर का भी है... मज़ेदार बात यह है कि मेरी मां को भी उनकी रचनाएं, और उनसे भी ज़्यादा कवितापाठ करते वक्त उनके चेहरे पर आने वाली मुस्कुराहट पसंद है... वह मेरी पत्नी के अध्यापक भी रहे हैं... उनकी कई रचनाएं कभी दूरदर्शन पर आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों में सुनी हैं... आज उन्हीं की एक और रचना आप सबके लिए लेकर आया Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-65593468563738541752011-06-28T11:08:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.227+05:30फूलों के रंग से... (प्रेम पुजारी)विशेष नोट : बेहद खूबसूरत कविता, जो हमेशा से मुझे बेहद पसंद रही है... मन में पगे प्रेम की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति यदा-कदा ही देखने-सुनने को मिलती है, सो, आज आप सब भी इसका आनंद लें...
फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
गीतकार : नीरज
संगीतकार : सचिनदेव बर्मन
पार्श्वगायक : किशोर कुमार
फूलों के रंग से, दिल की कलम से, तुझको लिखी रोज़ पाती...
कैसे बताऊं, किस-किस तरह से, पल-पल मुझे तू सताती...
तेरे ही सपने, Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-77732940393532099862011-06-21T10:24:00.001+05:302012-02-07T12:14:32.424+05:30जो दिया था तुमने इक दिन, मुझे फिर वो प्यार दे दो... (संबंध)विशेष नोट : आज सुबह-सुबह मेरे फुफेरे भाई ने अपने फेसबुक पर इक गीत के मुखड़े से स्टेटस अपडेट किया... बस, याद आ गया, कितना अच्छा लगता था यह गीत स्कूल के दिनों में... कवि प्रदीप के लिखे बेहद खूबसूरत बोल, और सचमुच हिलाकर रख देने वाली आवाज़ महेन्द्र कपूर की... सो, आप सब भी आनंद लीजिए...
फिल्म : सम्बन्ध (1968)
संगीतकार : ओपी नय्यर
पार्श्वगायक : महेन्द्र कपूर, हेमंत कुमार
गीतकार : कवि प्रदीप (वास्तविक Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-671579589363852862011-06-04T11:28:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.274+05:30प्यारी निष्ठा... (रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')विशेष नोट : श्री रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' द्वारा उनकी पोती प्राची के लिए रचित कविता 'प्यारी प्राची' को मैंने पिछले वर्ष अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया था, और बेटी के प्यार में पड़कर उसमें उनकी पोती का नाम क्षमाप्रार्थना के साथ अपनी बेटी के नाम से बदल दिया था... आज शास्त्री जी ने मेरी बेटी के लिए नई कविता लिखकर प्रेषित की है, उनका हार्दिक धन्यवाद, एक पिता के रूप में... आप सब भी पढ़कर आनंद लें...Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-29447685940417298242011-06-03T11:47:00.005+05:302012-02-07T12:14:31.763+05:30छुट्टियों में दिल्ली की सैर... (विवेक रस्तोगी)विशेष नोट : गर्मियां आईं, स्कूलों में छुट्टियां हुईं, और बच्चे दिल्ली पहुंचे, यह तो हर बार होता ही है... हर बार उन्हें कुछ न कुछ नया सिखाता भी हूं, सो, इस बार भी एक कविता लिख दी है उनके लिए... आप लोग भी मुलाहिज़ा फरमाएं...
छुट्टी थी जब स्कूल में अपने, सब कुछ हुआ था बंद,
दिल्ली जाकर मैं और निष्ठा, रहे थे सबके संग...
दादा-दादी, चाचा-चाची, सबका मिला था प्यार,
रोज़ किया था हल्ला-गुल्ला, Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-59840634718776825292011-06-03T11:01:00.000+05:302012-02-07T12:14:32.180+05:30चिड़िया... (श्यामसुन्दर अग्रवाल)विशेष नोट : हर साल की तरह छुट्टियों में बच्चे इस बार भी मेरे पास दिल्ली पहुंच चुके हैं, सो, उन्हें कुछ नया सिखाने की मेरी कवायद भी हमेशा की तरह शुरू हो गई है, जिसका परिणाम श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल द्वारा रचित इस शिक्षाप्रद बाल कविता के रूप में आपके सामने है... भारतीय भाषाओं में रचित काव्य के संकलन के लिए प्रसिद्ध www.kavitakosh.org के अनुसार श्री अग्रवाल का जन्म पंजाब के कोटकपुरा में हुआ था... Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3482810709748108183.post-18861172677206599662011-05-20T12:45:00.000+05:302012-02-07T12:14:31.580+05:30आई रेल, आई रेल... (रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')विशेष नोट : गर्मी की छुट्टियों के दौरान बच्चों को कुछ नया सिखाने के उद्देश्य से कविताकोश.ओआरजी पर आया था, और वहां रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की लिखी यह कविता मिली... अच्छी लगी, सो, आप लोग भी पढ़ लें...
धक्का-मुक्की, रेलम-पेल,
आई रेल, आई रेल...
इंजन चलता सबसे आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे...
हॉर्न बजाता, धुआं छोड़ता,
पटरी पर यह तेज़ दौड़ता...
जब स्टेशन आ जाता है,
सिग्नल पर रुक जाता है...
Vivek Rastogihttp://www.blogger.com/profile/13115647692028990343noreply@blogger.com2