विशेष नोट : फेसबुक पर एक मित्र के मित्र श्री रत्नेश त्रिपाठी ने आज बच्चों के लिए हिन्दी का कायदा बनाने की कोशिश की, और दो लाइनें लिखकर भेजीं... बस, फिर क्या था, मेरे खुराफाती दिमाग में कीड़ा कुलबुलाया, और मैंने अपनी तरफ से पूरा कर डाला... बताइए, कैसा रहा...?
सबसे पहले मुलाहिज़ा फरमाएं, ये है रत्नेश जी की कविता...
क की कोयल कूक रही है...
ख खरगोश खड़ा है...
ग की गइया बैठी भइया...
घ क घड़ा भरा है...
आगे देखो ड़. खाली... सभी बजाओ मिलकर ताली...
च से चमके चंदा मामा...
छ क छप्पर छाये...
ज की बनी जलेबी रानी...
झ झंडा फहराए...
आगे देखो ञ खाली... सभी बजाओ मिलकर ताली...
और अब मेरा लिखा काव्यात्मक कायदा...
'क' से कोयल कूक रही, 'ख' से खरगोश खड़ा है...
'ग' से गाय रंभाती है, 'घ' से घड़ा भरा है...
'ङ' खाली से कुछ न शुरू हो, देखो, यहीं पड़ा है...
'च' से चंदा मामा चमका, 'छ' से छप्पर छाया...
'ज' से जलेबी मीठी-मीठी, 'झ' झंडा फहराया...
'ञ' खाली से भी न बने कुछ, मैं तो अब चकराया...
'ट' से लाल टमाटर खाया, 'ठ' से ठोकर खाई...
'ड' से डमरू बजता, भैया, 'ढ' ढोलक बजवाई...
'ण' से भी कुछ शुरू न होता, है अजीब यह भाई...
'त' से तीर रहे तरकश में, 'थ' से थरमस बनता...
'द' से दादा-दादी होते, 'ध' से धनुष है तनता...
जोर से बजता 'न' से नगाड़ा, बच्चा-बच्चा सुनता...
'प' से उड़ती पतंग हवा में, 'फ' से खिलते फूल...
'ब' से बकरी मैं-मैं करती, जब भी उड़ती धूल...
'भ' से भालू, 'म' से मछली, इनको भी मत भूल...
'य' से यज्ञ किया साधु ने, 'र' से रस्सी बांधी...
'ल' से लोटा होता, 'व' से वायु की चलती आंधी...
'श' से शलगम उगती है, 'ष' से षट्कोण है बनता...
'स' से सरगम बने, जो 'ह' से हारमोनियम बजता...
'क्ष' से क्षत्रिय घूमे लेकर, हाथ में 'त्र' से त्रिशूल...
'ज्ञ' से ज्ञानी जो भी पढ़ाएं, कभी न उसको भूल...
सबसे पहले मुलाहिज़ा फरमाएं, ये है रत्नेश जी की कविता...
क की कोयल कूक रही है...
ख खरगोश खड़ा है...
ग की गइया बैठी भइया...
घ क घड़ा भरा है...
आगे देखो ड़. खाली... सभी बजाओ मिलकर ताली...
च से चमके चंदा मामा...
छ क छप्पर छाये...
ज की बनी जलेबी रानी...
झ झंडा फहराए...
आगे देखो ञ खाली... सभी बजाओ मिलकर ताली...
और अब मेरा लिखा काव्यात्मक कायदा...
'क' से कोयल कूक रही, 'ख' से खरगोश खड़ा है...
'ग' से गाय रंभाती है, 'घ' से घड़ा भरा है...
'ङ' खाली से कुछ न शुरू हो, देखो, यहीं पड़ा है...
'च' से चंदा मामा चमका, 'छ' से छप्पर छाया...
'ज' से जलेबी मीठी-मीठी, 'झ' झंडा फहराया...
'ञ' खाली से भी न बने कुछ, मैं तो अब चकराया...
'ट' से लाल टमाटर खाया, 'ठ' से ठोकर खाई...
'ड' से डमरू बजता, भैया, 'ढ' ढोलक बजवाई...
'ण' से भी कुछ शुरू न होता, है अजीब यह भाई...
'त' से तीर रहे तरकश में, 'थ' से थरमस बनता...
'द' से दादा-दादी होते, 'ध' से धनुष है तनता...
जोर से बजता 'न' से नगाड़ा, बच्चा-बच्चा सुनता...
'प' से उड़ती पतंग हवा में, 'फ' से खिलते फूल...
'ब' से बकरी मैं-मैं करती, जब भी उड़ती धूल...
'भ' से भालू, 'म' से मछली, इनको भी मत भूल...
'य' से यज्ञ किया साधु ने, 'र' से रस्सी बांधी...
'ल' से लोटा होता, 'व' से वायु की चलती आंधी...
'श' से शलगम उगती है, 'ष' से षट्कोण है बनता...
'स' से सरगम बने, जो 'ह' से हारमोनियम बजता...
'क्ष' से क्षत्रिय घूमे लेकर, हाथ में 'त्र' से त्रिशूल...
'ज्ञ' से ज्ञानी जो भी पढ़ाएं, कभी न उसको भूल...
अभी अभी त्रिपाठी जी की अधूरी कविता पढ़ी , तो उनसे मैं ने पूछ लिया बाकि की कविता कहाँ है तो जवाब आया की इतनी ही याद है , फिर उन ही लाईनों को गूगल किया तो आप द्वारा लिखी ताजा कविता मिल गयी . धन्यवाद , अच्छी लिखी है , मूल कविता मिल जाती तो क्या बात होती :-) ( !!!!ला लच !!! ) बच्चे आसानी से क ख ग सीख सकते हैं इस कविता से . इस के आलावा अशोक चक्रधर कवी ने भी एक कविता लिखी थी जिससे पुरे क ख ग सीख सकते हैं कहीं मिले तो भेज देना हम को भी . also visit me at socialservicefromhome.com for some poems and a lot of very good info
ReplyDeleteप्रशंसा के शब्दों के लिए धन्यवाद, रवींद्र जी... :-)
Deleteबहुत अच्छे, विवेक भाई :-)
ReplyDeleteशुक्रिया, अध्ययन भाई... :-)
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना है श्रीमानजी
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना है श्रीमानजी
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