Tuesday, July 27, 2010

देहि शिवा वर मोहि इहै... (श्री गुरु गोविन्द सिंह जी)

विशेष नोट : यह छुटपन से ही मेरी पसंदीदा उक्तियों में शामिल है... यह सवैया सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी की रचना है, जिसे दशम् ग्रंथ, अथवा श्री दशम् ग्रंथ साहिब के खंड 'चंडी चरित्र उक्ति बिलास' में स्थान दिया गया है...

उल्लेखनीय है कि दशम् ग्रंथ को आमतौर पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है... एक ओर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जहां अध्यात्म के मार्ग पर चलकर मुक्ति का मार्ग बताता है, वहीं दशम् ग्रंथ में धर्म का ज़िक्र नाममात्र के लिए है... दशम् ग्रंथ का उद्देश्य जनसाधारण को अन्याय और अधर्म के विरुद्ध आवाज़ उठाने और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना था... श्री दशम् ग्रंथ साहिब के कुछ हिस्से - जपुजी साहिब, त्वै प्रसाद सवैये (अमृत सवैये) तथा बेनती (विनती) चौपाई आदि - सिखों की नित्य प्रार्थना (नितनेम) में शामिल हैं... दशम् ग्रंथ में सम्मिलित रचनाएं ब्रजभाषा में हैं, और गुरुमुखी लिपि में लिखी गई हैं...

एक और बात जानने योग्य है - सिखी से जुड़े सभी ग्रंथों आदि में सिख गुरुओं ने 'वाहेगुरु' (परमपिता परमात्मा) का उल्लेख करने के लिए कई हिन्दू-मुस्लिम नामों का प्रयोग किया है... इस सवैये में भी 'शिवा' का अर्थ 'वाहेगुरु' ही है, जो, एक है, अवर्णनीय है, अनदेखा है, और अनश्वर है... 

मूल गुरुमुखी लिपि में लिखा सवैया...

ਦੇਹਿ ਸ਼ਿਵਾ ਵਰ ਮੋਹਿ ਇਹੈ, ਸ਼ੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨਾ ਟਰੋਂ...
ਨ ਡਰੂੰ ਅਰਿ ਸੌਂ ਜਬ ਜਾਯਿ ਲਰੌਂ, ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ...
ਅਰੁ ਸਿਖਹੋੰ ਆਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕੌ, ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋ...
ਜਬ ਆਵ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ, ਅਥਿ ਹੀ ਰਣ ਮੈਂ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ...

देवनागरी (हिन्दी) लिपि में लिखा सवैया...

देहि शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन ते कबहूं न टरूं...
न डरूं अरि सौं जब जाइ लरूं, निसचै कर अपनी जीत करूं...
अरु सिखहों आपने ही मन कौ, इह लालच हउ गुन तउ उचरूं...
जब आऊ की अउध निदान बनै, अथि ही रन में तब जूझ मरूं...

The couplet in the Roman (English) script...

dehi Shiva var mohi ihai, shubh karman te kabahoo na Taroon...
na Daroon ari sau jab jaai laroon, nischai kar apni jeet karoon...
aru sikhho aapne hi man ko, ih laalach hau gun tau uchroon...
jab aau ki audh nidaan banai, athi hi ran mein tab joojh maroon...

इन पंक्तियों का हिन्दी में अर्थ है :
हे शिव (परमपिता परमात्मा), मुझे यही वर (वरदान) दीजिए, कि मैं शुभ कार्यों को करने से कभी पीछे न हटूं, उन्हें कभी न टालूं... जब भी मैं शत्रु से लड़ने जाऊं, मेरे भीतर डर के लिए कोई स्थान न हो, और मुझमें इतना आत्म-विश्वास हो, कि मैं दृढ़ निश्चय के साथ जाकर युद्ध करूं, और जीतकर लौटूं... मैं अपने हृदय को सदा आप ही के गुण और अच्छाइयां सीखने का लालच देता रहूं... और जब मेरे जीवन के अंतिम दिन आ जाएं, तो मैं युद्धभूमि में जोश के साथ सच के लिए लड़ता हुआ मरूं...

Translation in English (Courtesy: Wikipedia):
O Lord grant me the boon, that I may never deviate from doing a good deed...
That I shall not fear when I go into combat, and with determination I will be victorious...
That I may teach myself this greed alone, to learn only Thy praises...
And when the last days of my life come, I may die in the might of the battlefield...

4 comments:

  1. यह रचना हर दृष्टि से स्मरणीय है। हर बच्चे को सिखायी जानी चाहिये। हमारे संकल्प ऐसे ही होने चाहिये।

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  2. बिल्कुल सही कहा आपने, अनुनाद...

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  3. प्रीति गोयलWednesday, July 28, 2010 12:49:00 AM

    विवेक जी, कहते हैं प्रेरणा ही जीवन है...
    हमारी परमात्मा से यही प्रार्थना है की आप इस ही तरह अच्छी अच्छी उक्तियों के अनुवाद कर के सब को प्रेरित करते रहें...

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  4. प्रीति जी, वादा करता हूं, यही प्रयास करता रहूंगा...

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