विशेष नोट: अब इसे भजन कहिए या प्रार्थना, हमारे परिवार में यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती रही है... मेरे दादाजी भी इसे गाते थे, और हम भाई हमारे पिता के मुख से भी इसे बचपन से सुनते आ रहे हैं... अब मेरे बेटे को भी यह काफ़ी अच्छी लगती है... दरअसल, इसे आमतौर पर हम सुबह स्नान करते हुए गाते हैं, और इसकी बेहद तेज़ गति ही इसे बेहद रोचक और कर्णप्रिय बना देती है...
राम भजो, राम भजो, राम भजो, राम...
गोविन्द, माधव, श्याम भजो श्याम...
राम जी का नाम सदा मिश्री...
जब चाखे, तब गोंद-गिरी...
राम नाम लडुआ, गोपाल नाम घी...
हर को नाम मिश्री, तू घोल-घोल पी...
रामजी, रामजी, यही थारो काम जी...
खाने को दो दाल-रोटी, चाबने को पान जी...
चढ़ने को घोड़ा देओ, खर्चने को दाम जी...
रामजी, रामजी, यही थारो काम जी...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Tuesday, December 16, 2008
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