विशेष नोट : साधारणतया अंतस में छिपे देशभक्ति के भाव को झकझोरकर उभार देने में सक्षम यह कविता मैंने शायद छठी या सातवीं कक्षा में याद की थी, जो आज तक कंठस्थ है...
चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूंथा जाऊं...
चाह नहीं प्रेमी माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊं...
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर,
हे हरि, डाला जाऊं...
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूं,
भाग्य पर इठलाऊं...
मुझे तोड़ लेना वनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक...
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस पथ जावें वीर अनेक...
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