Sunday, December 14, 2008

सरस्वती वन्दना (मूल संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद सहित)

विशेष नोट : प्राथमिक स्तर से लेकर दसवीं तक की मेरी पढ़ाई-लिखाई समर्थ शिक्षा समिति द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर एवं सरस्वती बाल मंदिर की नई दिल्ली स्थित हरि नगर शाखा में हुई... शिशु मंदिर के नाम में किसी का नाम जुड़ा था या नहीं, याद नहीं, परंतु बाल मंदिर की हमारी शाखा का पूरा नाम महाशय चूनीलाल सरस्वती बाल मन्दिर था...

हमारे विद्यालय की प्रार्थना सभा में प्रात:कालीन मंत्र, दो सरस्वती वन्दना (एक हिन्दी में तथा एक संस्कृत में), श्रीमद्भगवद्गीता के 10 श्लोकों का पाठ किया जाता था, जिनमें से कुछ वर्ष के उपरांत दो श्लोक बदल दिए गए थे (मैंने सभी 12 श्लोक यहां दिए हैं, और इंटरनेट पर होने का लाभ उठाते हुए सभी के अर्थ भी लिख दिए हैं)...

हमें विद्यालय से ही प्रार्थना की एक पुस्तिका (उसका नाम जहां तक याद है, 'अमृतवाणी' था) मिलती थी, जिसमें सभा के दौरान पढ़ी जाने वाली सभी प्रार्थनाएं प्रकाशित जाती थीं... 'अमृतवाणी' तो मुझे नहीं मिल पाई, परंतु गर्वान्वित हूं कि सिर्फ स्मृति के सहारे आज 21 वर्ष बाद भी लगभग सभी प्रार्थनाएं तलाश कर सका, या न मिलने की स्थिति में टाइप कर सका...

वैसे, विद्यालय की प्रार्थना सभा में कुछ वर्षों तक 'ऐक्य मंत्र' तथा 'गायत्री मंत्र' का भी पाठ हुआ... 'ऐक्य मंत्र' कतई याद नहीं है, परंतु 'गायत्री मंत्र' यहां इस ब्लॉग पर भावार्थ सहित आपको मिल जाएगा...

और हां, प्रार्थना सभा के अंत में सोमवार से शुक्रवार तक राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्...' तथा शनिवार को राष्ट्रीय गान 'जन गण मन...' का पाठ भी होता था, परंतु उन्हें यहां टाइप नहीं कर रहा हूं, क्योंकि वे बहुत-सी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं...

विद्यालय में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा के अतिरिक्त भोजनावकाश होने पर भोजन मंत्र, तथा विद्यालय की छुट्टी हो जाने से तुरंत पहले सायंकालीन प्रार्थना का पाठ भी अनिवार्य था, सो, वे भी आपके सामने हैं...


या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

अर्थ : जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें...

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥2॥

अर्थ : शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूं...

3 comments:

  1. vivek its nice to read that after a long time i left mcl in year 98 and its amazing to check ur forum thanks

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  2. Dear Poonam... It always gives you nice feelings when you remember the good old times... Hope you keep coming to this blog as it has much more than we used to read or recite in school... Take care... Vivek

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  3. Thanks Vivek, for remembering olden days...

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