विशेष नोट : मेरी नानीजी का भजन, जो अब तक मां और मौसी से सुनता रहता हूं... इस भजन की विशेषता मुझे यह लगती है कि इसमें भक्त जो प्रश्न उठा रहा है, वे बिल्कुल जायज़ हैं, परंतु उन पर सचमुच शायद कोई ध्यान नहीं देता...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं...
करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
तुम्हीं हो मूर्ति में भी, तुम्हीं व्यापक हो फूलों में,
भला भगवान पर भगवान को कैसे चढाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
लगाना भोग कुछ तुमको, एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं, सूरज, चांद और तारे,
महा अंधेर है कैसे, तुम्हें दीपक दिखाऊं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
भुजाएं हैं, न सीना है, न गर्दन, है न पेशानी,
कि हैं निर्लेप नारायण, कहां चंदन चढ़ाउं मैं...
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Tuesday, December 16, 2008
अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं... (भजन)
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vivek ji dhanyawad! aapki blog padhke mujhe yah bhajan mil paya !!! Aur ab main bhi blog sadasya hoon!
ReplyDeleteAapka yahaan sadaa swaagat hai, Pooja ji...
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