विशेष नोट: यह भजन मेरी नानीजी गाया करती थीं, और मेरी मां भी... बचपन से ही सुनते आए होने की वजह से इसे भूल जाने का प्रश्न ही नहीं था, लेकिन फिर भी मां की डायरी में से देखकर टाइप कर दिया है...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
ध्यान में नित्य तन मन लगाते रहो...
वही मीरा का गिरधर, परम धाम है,
वही यादव है, रघुकुल कुमुद राम है,
वही है जानकीवर, वही श्याम है,
किसी भी रूप में उसको ध्याते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
वही ब्रह्मा, वही विष्णु का भेष है,
वही शंकर सदाशिव, वही शेष है,
वही श्री शारदा शक्ति राकेश है,
किसी में ध्यान अपना जमाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
बिना उसकी कृपा के न निस्तार है,
वही आधार, कर्तार, भर्तार है,
जन्म लेने का जग में यही सार है,
कृष्ण का नाम सुनते-सुनाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
जब तलक मन का मनका हिलेगा नहीं,
ज्ञान का पुष्प तब तक खिलेगा नहीं,
नंदनंदन कन्हैया मिलेगा नहीं,
उसे ध्याते रहो, सिर झुकाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
कोई कहता निराकार साकार है,
सारे संसार का एक आधार है,
सभी हारे, न पाता कोई पार है,
उसी का नाम रटते-रटाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
देर है उसके घर में, न अंधेर है,
सुनी जाती सभी की, वहां टेर है,
नहीं उसके नियम में उलट-फेर है,
पूज उसको अभयदान पाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
चाह-चिंता हृदय से हटेगी नहीं,
मोह-माया की फांसी कटेगी नहीं,
कृष्ण या राम रसना रटेगी नहीं,
राग-द्वेषों से मन को हटाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
पूछते हो, कहां पर है परमात्मा,
जानते हैं 'दिनेश' उसको शुद्धात्मा,
देखने से मिलेगा, तुम्ही में रमा,
आप आपे में मन को लगाते रहो...
कृष्ण गोविन्द के गीत गाते रहो...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Monday, December 15, 2008
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