Saturday, December 13, 2008

हम पंछी उन्मुक्त गगन के... (शिवमंगल सिंह 'सुमन')

रचनाकार : शिवमंगल सिंह 'सुमन'


हम पंछी उन्मुक्त गगन के,
पिंजरबद्ध न गा पाएंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर,
पुलकित पंख टूट जाएंगे...

हम बहता जल पीने वाले,
मर जाएंगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबौरी,
कनक-कटोरी की मैदा से...

स्वर्ण-शृंखला के बंधन में,
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं,
तरु की फुनगी पर के झूले...

ऐसे थे अरमान कि उड़ते,
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल,
चुगते तारक-अनार के दाने...

होती सीमाहीन क्षितिज से,
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता,
या तनती सांसों की डोरी...

नीड़ न दो, चाहे टहनी का,
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो,
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो...

2 comments:

  1. Respected Vivekji
    Thank u Main bhajan- Ajab Hairaan hoon bhagwan kisi ko samarpit karna chahti thi, so use dhoondh rahi thi, ki aap ke blog mein mujhe wah mil gaya, kripya mera dhanyawad sweekar karein. Aasha hai aapse aagey bhi mere bachpan ke sune hue bhajan ityadi padhne ko milenge. Punah is adbhut prayas ke liye dhanyawad

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  2. Pooja ji... Mujhe bhi geet-bhajan-praartana-kavita behad pasand hain, so, apna shauk poora karne ke liye, is ummeed mein blog par jod diye the, taaki hamaari agli peedhi shaayad yahin se kuchh yaad kar le...

    Beherhaal, aapke dhanyavaad ke liye haardik dhanyavaad... Aapka sadaa swaagat hai yahaan...

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