विशेष नोट : प्राथमिक स्तर से लेकर दसवीं तक की मेरी पढ़ाई-लिखाई समर्थ शिक्षा समिति द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर एवं सरस्वती बाल मंदिर की नई दिल्ली स्थित हरि नगर शाखा में हुई... शिशु मंदिर के नाम में किसी का नाम जुड़ा था या नहीं, याद नहीं, परंतु बाल मंदिर की हमारी शाखा का पूरा नाम महाशय चूनीलाल सरस्वती बाल मन्दिर था...
हमारे विद्यालय की प्रार्थना सभा में प्रात:कालीन मंत्र, दो सरस्वती वन्दना (एक हिन्दी में तथा एक संस्कृत में), श्रीमद्भगवद्गीता के 10 श्लोकों का पाठ किया जाता था, जिनमें से कुछ वर्ष के उपरांत दो श्लोक बदल दिए गए थे (मैंने सभी 12 श्लोक यहां दिए हैं, और इंटरनेट पर होने का लाभ उठाते हुए सभी के अर्थ भी लिख दिए हैं)...
हमें विद्यालय से ही प्रार्थना की एक पुस्तिका (उसका नाम जहां तक याद है, 'अमृतवाणी' था) मिलती थी, जिसमें सभा के दौरान पढ़ी जाने वाली सभी प्रार्थनाएं प्रकाशित जाती थीं... 'अमृतवाणी' तो मुझे नहीं मिल पाई, परंतु गर्वान्वित हूं कि सिर्फ स्मृति के सहारे आज 21 वर्ष बाद भी लगभग सभी प्रार्थनाएं तलाश कर सका, या न मिलने की स्थिति में टाइप कर सका...
वैसे, विद्यालय की प्रार्थना सभा में कुछ वर्षों तक 'ऐक्य मंत्र' तथा 'गायत्री मंत्र' का भी पाठ हुआ... 'ऐक्य मंत्र' कतई याद नहीं है, परंतु 'गायत्री मंत्र' यहां इस ब्लॉग पर भावार्थ सहित आपको मिल जाएगा...
और हां, प्रार्थना सभा के अंत में सोमवार से शुक्रवार तक राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्...' तथा शनिवार को राष्ट्रीय गान 'जन गण मन...' का पाठ भी होता था, परंतु उन्हें यहां टाइप नहीं कर रहा हूं, क्योंकि वे बहुत-सी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं...
विद्यालय में प्रात:कालीन प्रार्थना सभा के अतिरिक्त भोजनावकाश होने पर भोजन मंत्र, तथा विद्यालय की छुट्टी हो जाने से तुरंत पहले सायंकालीन प्रार्थना का पाठ भी अनिवार्य था, सो, वे भी आपके सामने हैं...
ॐ भूर्भुव स्वः
तत् सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात
गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है... यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है... इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है... ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है...
शाब्दिक अर्थ
ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा
भू: : प्राणों से प्यारा
भुव: : दुख विनाशक
स्व: : सुखस्वरूप है
तत् : उस
सवितु: : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक
वरेण्य : वरने योग्य
भुर्ग: : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का
देवस्य : देव के
धीमहि : हम ध्यान करें
धियो : बुद्धियों को
य: : जो
न: : हमारी
प्रचोदयात : शुभ कार्यों में प्रेरित करें
भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें... तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें...
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