Friday, December 12, 2008

श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र (मूल पाठ)

विशेष नोट : बचपन से ही मुझे यह स्तुति बेहद पसंद है... इसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग बेहद खूबसूरती के साथ किया गया है, और मेरे विचार में इसका पाठ करने से उच्चारण दोष सुधारने में सहायता मिल सकती है...

निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचन्ड मुण्डखण्डिनी।
वने रणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धराविधात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

लसत्सुलोल लोचनम् लतासनम्वरम् प्रदम्।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

कराब्जदानदाधराम्, शिवाशिवाम् प्रदायिनी।
वरा-वराननाम् शुभम् भजामि विन्ध्यवासिनी।।

कपीन्द्न जामिनीप्रदम्, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

पुरन्दरादि सेविताम्, पुरादिवंशखण्डिताम्‌।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीम्, भजामि विन्ध्यवासिनी।।

।। इति श्री विन्ध्येश्वरी स्तोत्र सम्पूर्ण ।।

1 comment:

  1. Sir, if you have meaning (Sarlarth) of Ma Vindhyeshwari Statotra, kindly send me. I am also a Bhakta of Ma.
    One another query is that in the second last line of this statotra Is it "Puradivanshkhanditam or Muradivansh Khandinim. In Gita Press book it is "Muradivanshkhandinim' If you are aware about this, guide me. I will be thankful to you.
    My Email ID: rsgogo24@yahoo.com
    Thanks and try to keep in touch for the noble guidance

    Rajeev Sharma

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