Friday, May 20, 2011

आई रेल, आई रेल... (रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

विशेष नोट : गर्मी की छुट्टियों के दौरान बच्चों को कुछ नया सिखाने के उद्देश्य से कविताकोश.ओआरजी पर आया था, और वहां रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की लिखी यह कविता मिली... अच्छी लगी, सो, आप लोग भी पढ़ लें...


 धक्का-मुक्की, रेलम-पेल,
आई रेल, आई रेल...

इंजन चलता सबसे आगे,
पीछे-पीछे डिब्बे भागे...

हॉर्न बजाता, धुआं छोड़ता,
पटरी पर यह तेज़ दौड़ता...

जब स्टेशन आ जाता है,
सिग्नल पर रुक जाता है...

जब तक बत्ती लाल रहेगी,
इसकी ज़ीरो चाल रहेगी...

हरा रंग जब हो जाता है,
तब आगे को बढ़ जाता है...

बच्चों को यह बहुत सुहाती,
नानी के घर तक ले जाती...

छुक-छुक करती आती रेल,
आओ मिलकर खेलें खेल...

धक्का-मुक्की, रेलम-पेल,
आई रेल, आई रेल...

2 comments:

  1. रस्तोगी जी हमारी बाल कविता लगाई थी तो हमें सूचना तो दे ही देते!
    इससे कुछ और भी कमेंट आ जाते इस पोस्ट पर!

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  2. शास्त्री जी... क्षमा चाहता हूं, परंतु आपसे संपर्क के किसी साधन का ज्ञान न होने से ऐसा हुआ, वरना अवश्य सूचना देता... वैसे इसके अतिरिक्त आपकी एक और कविता 'प्यारी प्राची' भी मैंने अपने ब्लॉग में इस्तेमाल की है, जिसका लिंक दिए दे रहा हूं... और हां, उस कविता में नाम बदल देने के लिए कविता प्रकाशन के समय भी क्षमायाचना कर ली थी, अब आपसे संवाद का अवसर प्राप्त हो जाने पर आपसे अलग से भी क्षमा चाहता हूं... (http://kuchhpuraaniyaadein.blogspot.com/2010/11/blog-post_26.html)

    ReplyDelete

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