विशेष नोट : रविवार, 8 मई, 2011 को बरेली से दिल्ली लौटते वक्त ट्रेन में एक बच्चा मिला, जिसका नाम नोमान है, वह दिल्ली में ही दिलशाद गार्डन के ग्रीनवे स्कूल की पहली क्लास (1 D) में पढ़ता है... उसने रास्ते में एक कविता सुनाई, जो मुझे अपने बच्चों के लिए भी अच्छी लगी, सो, आप लोग भी मुलाहिज़ा फरमाएं...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, एक लड्डू दो...
लालाजी : लड्डू चाहिए तो चार आने दो...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, पैसे नहीं...
लालाजी : पैसे नहीं, तो लड्डू नहीं...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, इक बात कहूं...
बच्चा : आपकी मूंछें बड़ी, प्यारी है...
लालाजी : बेटाजी, बेटाजी, मेरे पास तो आओ...
लालाजी : इक लड्डू छोड़ो, तुम दो लड्डू खाओ...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, पॉकेट्स हैं चार...
बच्चा : चारों भर जाएं तो सबको नमस्कार...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, एक लड्डू दो...
लालाजी : लड्डू चाहिए तो चार आने दो...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, पैसे नहीं...
लालाजी : पैसे नहीं, तो लड्डू नहीं...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, इक बात कहूं...
बच्चा : आपकी मूंछें बड़ी, प्यारी है...
लालाजी : बेटाजी, बेटाजी, मेरे पास तो आओ...
लालाजी : इक लड्डू छोड़ो, तुम दो लड्डू खाओ...
बच्चा : लालाजी, लालाजी, पॉकेट्स हैं चार...
बच्चा : चारों भर जाएं तो सबको नमस्कार...
No comments:
Post a Comment