Friday, May 20, 2011

कोई दीवाना कहता है... (डॉ कुमार विश्वास)

विशेष नोट : कुछ दिन पहले मैंने आज के दौर के अपने पसंदीदा कवि कुमार विश्वास की एक बेहतरीन कविता आप लोगों को पढ़वाई थी... अब आप लोगों के सामने डॉ विश्वास की वह कविता लेकर आया हूं, जिसके लिए वह सबसे ज़्यादा पहचाने जाते हैं... डॉ विश्वास की खुद की वेबसाइट (KumarVishwas.com) के मुताबिक 10 फरवरी, 1970 को पिलखुआ, जिला ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में जन्मे कुमार की चर्चित कृतियों में 'कोई दीवाना कहता है' (कविता संग्रह, 2007) के अतिरिक्त 'इक पगली लड़की के बिन' (कविता संग्रह, 1995) तो शामिल है ही, हिन्दी भाषा की अनेक पत्रिकाओं में उनकी अन्य कविताएं भी प्रकाशित हुई हैं, तथा वह देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों, जैसे आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी और अग्रणी विश्वविद्यालयों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि कहलाते हैं। डॉ विश्वास आजकल कई फिल्मों में गीत, पटकथा और कहानी-लेखन का काम कर रहे हैं...

कॉपीराइट नोट : इस कविता के सर्वाधिकार इसके रचयिता डॉ कुमार विश्वास के पास ही हैं, तथा उन्हें श्रेय देते हुए इस कविता को यहां प्रकाशित कर रहा हूं... यदि किसी भी कारण से डॉ विश्वास अथवा / तथा उनकी रचनाओं के प्रकाशक / प्रकाशकों को इस पर आपत्ति हो, तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचित करें, इसे तुरंत हटा दिया जाएगा...

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है,
मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है...
मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है,
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है...

मोहब्बत एक अहसासों की, पावन-सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है...
यहां सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आंसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो न समझे तो पानी है...

समन्दर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता,
यह आंसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता...
मेरी चाहत को दुल्हन, तू बना लेना, मगर सुन ले,
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता...

भ्रमर कोई कुमुदिनी पर, मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख्वाब, पल बैठा तो हंगामा...
अभी तक डूबकर सुनते थे, सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हकीक़त में, बदल बैठा तो हंगामा...

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