विशेष नोट : 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...' गीत लिखने के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध रहे मोहम्मद इक़बाल का जन्म 9 नवंबर, 1877 को पंजाब के सियालकोट में हुआ, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है, और उनका निधन 21 अप्रैल, 1938 को हुआ... कम से कम हमारी पीढ़ी के हिन्दुस्तानियों के लिए यही गीत इक़बाल की पहचान है, सो, आप लोग भी इसे पूरा पढ़ें, क्योंकि स्कूलों आदि में सिर्फ तीन अन्तरे ही गाए जाते हैं...
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा...
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा...
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में...
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहां हमारा...
परबत वो सबसे ऊंचा, हमसाया आसमां का...
वो संतरी हमारा, वो पासबां हमारा...
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां...
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा...
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको...
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा...
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना...
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा...
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा, सब मिट गए जहां से...
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा...
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहां हमारा...
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहां में...
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा...
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा...
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा...
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा...
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा...
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में...
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहां हमारा...
परबत वो सबसे ऊंचा, हमसाया आसमां का...
वो संतरी हमारा, वो पासबां हमारा...
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां...
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा...
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको...
उतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा...
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना...
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा...
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा, सब मिट गए जहां से...
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा...
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहां हमारा...
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहां में...
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा...
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा...
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा...
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