विशेष नोट : यह गीत बचपन से सुनता आ रहा हूं, सो, कंठस्थ है... सोचता हूं, बेहद खूबसूरती से लिखा हुआ (और जोश में गाया हुआ भी) यह गीत अगर हर हिन्दुस्तानी सुनें (और गुने भी), तो हिन्दुस्तान में अमन सपने की बात नहीं रह जाएगा... लेकिन अफसोस, जो मैं सोचता हूं, वही सपना है...
एक बात और, इंटरनेट पर कहीं भी यह गीत हिन्दी में पूरा उपलब्ध नहीं हुआ, सो, कल रात को पूरा टाइप कर दिया था... आशा है, सभी को पसंद आएगा...
फिल्म : धूल का फूल
गीतकार : साहिर लुधियानवी
संगीतकार : एन दत्ता
पार्श्वगायक : मोहम्मद रफी
फिल्म निर्देशक : यश चोपड़ा (यह इनकी निर्देशक के रूप में पहली फिल्म थी)
फिल्म निर्माता : बीआर चोपड़ा
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है,
तुझको किसी मज़हब से कोई काम नहीं है...
जिस इल्म ने इंसान को तक़सीम किया है,
उस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है...
तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया,
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया...
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें, एक ही धरती,
हमने कहीं भारत, कहीं ईरान बनाया...
जो तोड़ दे हर बंध, वो तूफान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
नफरत जो सिखाए, वो धरम तेरा नहीं है,
इंसां को जो रौंदे, वो कदम तेरा नहीं है...
कुरआन न हो जिसमें, वो मंदिर नहीं तेरा,
गीता न हो जिसमें, वो हरम तेरा नहीं है...
तू अम्न का और सुलह का अरमान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
ये दीन के ताजिर, ये वतन बेचने वाले,
इंसानों की लाशों के कफन बेचने वाले...
ये महल में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे,
कांटों के इवज रूह-ए-चमन बेचने वाले...
तू इनके लिए मौत का ऐलान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा...
मुश्किल अल्फाज़ के माने... (कठिन शब्दों के अर्थ)
मज़हब : धर्म
इल्म : शिक्षा
बंध : बांध
धरम : धर्म
इंसां : इंसान
अम्न : अमन, शांति
दीन : धर्म
ताजिर : व्यापारी
इवज : एवज, बदले में
रूह-ए-चमन : शाब्दिक अर्थ है - बाग की रूह, लेकिन यहां इसका अर्थ है - देश की आत्मा
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Thursday, April 01, 2010
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा... (धूल का फूल)
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