विशेष नोट : अधिकतर बच्चों की तरह मेरे आदर्श भी मेरे पिता ही रहे हैं... सरकारी नौकरी छोड़कर मेरे पत्रकार बन जाने की एकमात्र वजह भी यही थी कि वह पत्रकार थे... अपने कॉलेज के समय में वह कविता भी किया करते थे, सो, आज उनकी डायरी से एक कविता आप सबके लिए प्रस्तुत कर रहा हूं... यह कविता दरअसल वर्ष 1962 में चीन द्वारा हमला किए जाने पर लिखा एक गीत है... बाद में हिन्दी भाषा विभाग, पटियाला द्वारा जिलास्तरीय कविता उच्चारण प्रतियोगिता में इसे द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया...
आज तक तो मैं प्रणय के गीत ही गाता रहा हूं...
कौन क्यों कितना मुझे प्रिय बस सुनाता भर रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
आज मेरे दीन स्वर का दैन्य मुझको खल रहा है...
वीरता के गान में अब मैं उसे बदला रहा हूं...
आज मेरी हर दिशा से स्वर यही उठ पा रहा है...
तोड़ वीणा लो उठा कवि, भैरवी मैं गा रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
आज मेरे देश का हर नागरिक यह कह रहा है...
मैं धरा पर स्वर्ग लख कर, मौन ही रहता रहा हूं...
पर शान्ति का आह्वान मुझको व्यर्थ अब लगने लगा है...
युद्ध का उपहार अभिनव, जग को दिलाने आ रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
जा रहा छूने गगन को वह हिमालय कह रहा है...
बर्फ से दबता हुआ भी, आग में जलता रहा हूं...
पिट गया हूं दोस्ती में, अब मगर ऐसा नहीं है...
दोस्त-दुश्मन की मैं अब पहचान करता जा रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
न्याय के साथी सदा के, अन्याय हमको खल रहा है...
इंच भर भूमि किसी की, दाब लें, इच्छा नहीं है...
पर तनिक भी आ गई अपनी अगर दुश्मन तले तो...
स्वत्व के हित लड़ मरेंगे, मैं तुम्हें जतला रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
जा चुका विश्वास वह तो, लौटकर आना नहीं है...
पर क्षम्य तुम, बस! लौट जाओ, मैं तुम्हें चेता रहा हूं...
सिंह सोतों को जगाया, चीन तुमने गलतियों से...
भूल गए वे रक्त-प्रिय हैं, मैं तुम्हें बतला रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
याद होगा यदि नहीं, इतिहास कब से कह रहा है...
आक्रमण कर चीन का सम्राट अब तक रो रहा है...
साम्यवादी चीनियों लेकर सबक तुम उस सबक से...
लौट जाओ चीन को अब, मैं तुम्हें समझा रहा हूं...
पर न जाने आज क्योंकर मैं नहीं गा पा रहा हूं...
गीत बदले साथ स्वर के, स्वयं बदला जा रहा हूं...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Sunday, August 02, 2009
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