Saturday, July 18, 2009

कभी मेरे अंदर भी एक शायर था... (विवेक रस्तोगी)

विशेष नोट : एक वक्त था, जब मैं भी अपने दादाजी, ताऊजी और पिता की तरह अपने अंदर के कवि (और शायद शायर भी) से परिचय बना रहा था... बहुत समय से सोच रहा था कि आप सबको भी बताऊं कि मैं कितना 'बेकार' शायर हुआ करता था... लेकिन फिर सोचा, अशार (शेर) कैसे भी हों, भाव तो आप लोगों के साथ बांट ही सकता हूं, सो, पेश हैं मेरे लिखे कुछ अशार...

न मिल पाई दवा कोई, उन हिकमत की किताबों में...
ये अलामत है तग़ाफ़ुल, औ' नज़र दरकार है...
(दिसम्बर 9, 2009)

तेरे दिल में हैं बैठे जो, ग़मों को दूर कर दूंगा...
फ़कत इक बार मुझको दिल से अपना मान लेना तू...
(27 अगस्त, 2009)

तेरे चेहरे का खिलना देखना काफी नहीं रहा...
सुनाई दे जो कुछ दिल की हंसी, तो बात बने...
(27 अगस्त, 2009)

होंठों पे हंसी हो तो मेरे काम की नहीं...
मैं तेरी आंखों में खुशी देखना चाहूं...
(27 अगस्त, 2009)

होंठों पे हंसी हो तो मेरे काम की नहीं...
मुस्कुराहट वो, जो आंखों से झलके है...
(27 अगस्त, 2009)

रस्मे-दुनिया से तो मैं काफ़िर ही कहा जाऊंगा,
बुतपरस्ती न सही, तेरे सामने सजदा किया...
(1 फरवरी, 1996)

ताहयात याद तेरी साथ रही, शाद था,
आज मैं डरता हूं, जो, आई क़ज़ा, तो होगा क्या...
(2 फरवरी, 1996)

ग़ुरबत में तेरी, ग़िज़ा मेरी, हो गई सबसे जुदा,
मुट्ठी ग़म है खाने को, औ' प्याला आंसू पीने को...
(2 फरवरी, 1996)

तिरे रूठे से, मिरी जान चली जाएगी, सोचा किए,
प्यार से मुझे तूने देखा, जान तो फिर भी गई...
(3 फरवरी, 1996)

जब तक न मुझको छोड़ दे तू, मैं करूं कैसे गिला,
दिल के भीतर ही सही, मेरे साथ तो रहती है तू...
(5 फरवरी, 1996)

तेरी क़ुरबत और ग़ुरबत, हो गई हैं एक सी,
लगे है ख़्वाब तू आए, जो आए ख़्वाब तू आए...
(6 फरवरी, 1996)

रहके तुझसे दूर मुझसे, ज़िंदगी कटती न थी,
मिल गए हो तुम, ये अब और भी मुश्किल लगे...
(20 फरवरी, 1996)

आपकी नज़रें ही हैं ये खूबसूरत, जान लो,
वरना मेरी शक्लो-सूरत में तो कुछ भी है नहीं...
(17 जून, 1996)

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