विशेष नोट : भजनों और संस्कृत श्लोकों के अतिरिक्त जो मुझे बेहद पसंद है, वह देशभक्ति गीत हैं... और मुझे खुशी होती है कि मैं उन लोगों में से हूं, जो इन गीतों को सिर्फ 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) पर ही नहीं, सारे साल लगभग रोज़ ही सुनता हूं... सो, कवि प्रदीप द्वारा लिखा एक ऐसा ही गीत आपके लिए भी...
फिल्म - जागृति
पार्श्वगायक - मोहम्मद रफी
संगीतकार - हेमंत कुमार
गीतकार - कवि प्रदीप (वास्तविक नाम - रामचंद्र द्विवेदी)
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं, झांकी हिन्दुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
उत्तर में रखवाली करता, पर्वतराज विराट है,
दक्षिण में चरणों को धोता, सागर का सम्राट है,
जमुना जी के तट को देखो, गंगा का ये घाट है,
बाट-बाट पे, हाट-हाट में, यहां निराला ठाठ है...
देखो ये तस्वीरें, अपने गौरव की, अभिमान की...
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
ये है अपना राजपूताना, नाज़ इसे तलवारों पे,
इसने सारा जीवन काटा, बरछी, तीर, कटारों पे,
ये प्रताप का वतन पला है, आज़ादी के नारों पे,
कूद पड़ी थीं यहां हज़ारों, पद्मिनियां अंगारों पे...
बोल रही है कण-कण में, कुरबानी राजस्थान की...
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
देखो मुल्क मराठों का ये, यहां शिवाजी डोला था,
मुग़लों की ताकत को जिसने, तलवारों पे तोला था,
हर पर्वत पे आग लगी थी, हर पत्थर एक शोला था,
बोली हर-हर महादेव की, बच्चा-बच्चा बोला था...
वीर शिवाजी ने रखी थी, लाज हमारी शान की...
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
जलियां वाला बाग ये देखो, यहीं चली थीं गोलियां,
ये मत पूछो किसने खेली, यहां खून की होलियां,
एक तरफ़ बंदूकें दन-दन, एक तरफ थी टोलियां,
मरने वाले बोल रहे थे, इन्क़लाब की बोलियां...
यहां लगा दी बहनों ने भी, बाज़ी अपनी जान की...
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
ये देखो बंगाल, यहां का हर चप्पा हरियाला है,
यहां का बच्चा-बच्चा, अपने देश पे मरने वाला है,
ढाला है इसको बिजली ने, भूचालों ने पाला है,
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है, और प्राणों में ज्वाला है...
जन्मभूमि है यही हमारे, वीर सुभाष महान की...
इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की...
वन्दे मातरम्... वन्दे मातरम्...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Wednesday, August 19, 2009
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं, झांकी हिन्दुस्तान की...
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