विशेष नोट : आदरणीय कवयित्री सुश्री सुभद्राकुमारी चौहान की यह रचना आज कविताकोश.ओआरजी पर दिखी, अच्छी लगा, सो, आप सबके लिए भी प्रस्तुत कर रहा हूं...
आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूं तेरा...
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा...
आ, उस बालक के समान,
जो है गुरुता का अधिकारी...
आ, उस युवक-वीर सा जिसको,
विपदाएं ही हैं प्यारी...
आ, उस सेवक के समान तू,
विनय-शील अनुगामी सा...
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में,
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा...
आशा की सूखी लतिकाएं,
तुझको पा, फिर लहराईं...
अत्याचारी की कृतियों को,
निर्भयता से दरसाईं...
आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूं तेरा...
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा...
आ, उस बालक के समान,
जो है गुरुता का अधिकारी...
आ, उस युवक-वीर सा जिसको,
विपदाएं ही हैं प्यारी...
आ, उस सेवक के समान तू,
विनय-शील अनुगामी सा...
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में,
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा...
आशा की सूखी लतिकाएं,
तुझको पा, फिर लहराईं...
अत्याचारी की कृतियों को,
निर्भयता से दरसाईं...
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