Thursday, April 28, 2011

है नमन उनको... (डॉ कुमार विश्वास)

विशेष नोट : आज के दौर के मेरे पसंदीदा कवियों में शामिल कुमार विश्वास की यह कविता हाल ही में सुनी मैंने... रोक नहीं पाया - न आंखों से गिरते आंसुओं को, और न आप लोगों तक पहुंचाने के लिए कविता को टाइप करती अंगुलियों को... देशभक्ति के जज़्बे से भरी बहुत-सी कविताएं पढ़ी-सुनी हैं, लेकिन शहीदों को जिस तरह श्रद्धांजलि कुमार विश्वास ने दी है, वह अन्यत्र ढूंढना आसान नहीं... रोंगटे खड़े हो जाते हैं, आंसू टपकने लगते हैं, गला रूंध जाता है... बहरहाल, 'कोई दीवाना कहता है...' के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध डॉ विश्वास की यह कविता मुझे यूट्यूब पर मिली... सो, आप सबके लिए भी ले आया हूं... आपकी जानकारी के लिए डॉ विश्वास की खुद की वेबसाइट (KumarVishwas.com) के मुताबिक 10 फरवरी, 1970 को पिलखुआ, जिला ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में जन्मे कुमार की चर्चित कृतियों में 'इक पगली लड़की के बिन' (कविता संग्रह, 1995), तथा 'कोई दीवाना कहता है' (कविता संग्रह, 2007) तो शामिल हैं ही, इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषा की अनेक पत्रिकाओं में उनकी कविताएं प्रकाशित हुई हैं, तथा वह देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों, जैसे आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी और अग्रणी विश्वविद्यालयों के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि कहलाते हैं। डॉ विश्वास आजकल कई फिल्मों में गीत, पटकथा और कहानी-लेखन का काम कर रहे हैं...

कॉपीराइट नोट : इस कविता के सर्वाधिकार इसके रचयिता डॉ कुमार विश्वास के पास ही हैं, तथा उन्हें श्रेय देते हुए इस कविता को यहां प्रकाशित कर रहा हूं... यदि किसी भी कारण से डॉ विश्वास अथवा / तथा उनकी रचनाओं के प्रकाशक / प्रकाशकों को इस पर आपत्ति हो, तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचित करें, इसे तुरंत हटा दिया जाएगा...

है नमन उनको, कि जो यश-काय को अमरत्व देकर,
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं...
है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय,
जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गए हैं...
है नमन उनको, कि जो यश-काय को अमरत्व देकर,
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं...

पिता, जिसके रक्त ने उज्ज्वल किया कुल-वंश माथा,
मां वही, जो दूध से इस देश की रज तोल आई...
बहन, जिसने सावनों में भर लिया पतझड़ स्वयं ही,
हाथ न उलझें कलाई से, जो राखी खोल लाई...
बेटियां, जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थीं,
पिता, तुम पर गर्व है, चुपचाप जाकर बोल आईं...
प्रिया, जिसकी चूड़ियों में सितारे से टूटते थे,
मांग का सिंदूर देकर, जो उजाले मोल लाई...
है नमन उस देहरी को, जहां तुम खेले कन्हैया,
घर तुम्हारे, परम तप की राजधानी हो गए हैं...

है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय...

हमने लौटाए सिकंदर, सिर झुकाए, मात खाए,
हमसे भिड़ते हैं वे, जिनका मन धरा से भर गया है...
नर्क में तुम पूछना अपने बुज़ुर्गों से कभी भी,
उनके माथे पर हमारी ठोकरों का ही बयां है...
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे,
शीश देने की कला में, क्या अजब है, क्या नया है...
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी,
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है...
है नमन उनको, कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन,
काल-कौतुक जिनके आगे पानी-पानी हो गए हैं...

है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय...

लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे,
विजय के उद्घोष, गीता के कथन, तुमको नमन है...
राखियों की प्रतीक्षा, सिंदूर-दानों की व्यथा,
ओ, देशहित-प्रतिबद्ध यौवन के सपन, तुमको नमन है...
बहन के विश्वास, भाई के सखा, कुल के सहारे,
पिता के व्रत के फलित, मां के नयन, तुमको नमन है...
कंचनी तन, चांदनी मन, आह, आंसू, प्यार, सपने,
राष्ट्र के हित कर गए सब कुछ हवन, तुमको नमन है...

है नमन उनको, कि जिनको काल पाकर हुआ पावन,
है नमन उनको, कि जिनको मृत्यु पाकर हुई पावन...
शिखर जिनके चरण छूकर, और मानी हो गए हैं...

है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय,
जो धरा पर गिर पड़े, पर आसमानी हो गए हैं...
है नमन उनको, कि जो यश-काय को अमरत्व देकर,
इस जगत में शौर्य की जीवित कहानी हो गए हैं...
है नमन उनको, कि जिनके सामने बौना हिमालय...

इसी गीत का वीडियो भी देखना चाहें तो...

8 comments:

  1. bahut sunder ...........adhbbhuut

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  2. कुछ रचनायें आप लिखते हैं कुछ आप को लिखतीं हैं .ये कविता कारगिल युद्ध के समय नैनीताल के शहीद युवा मेजर राजेश अधिकारी के शवदाह से लौटते हुए लिखी .नैनीताल में छुट्टियाँ मना रहा था मैं ...उसी दिन वापस नीचे उतरा ...और हल्द्वानी तक आते आते ये रचना कागज़ पर उतरी ...आभार विवेक

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  3. विश्वास कीजिए, डॉ विश्वास, एक शब्द भी झूठ नहीं है, इस कविता के साथ मेरे लिखे नोट में... सचमुच अंदर सब कुछ उमड़ता-घुमड़ता-सा महसूस हुआ, इसे सुनकर... आपका आभार ऐसी झिंझोड़ देने वाली रचना लिखने के लिए... :-)

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  4. विवेक जी को बहुत बहुत धन्यवाद इस अदभूत कविता को यहाँ उद्धृत करने के लिए.
    बेहद संवेदनशील कविता है . सच में एक एक रोम झंकृत हो गया . एक एक शब्द सुनकर देशप्रेम उमडता सा प्रतीत होता है और उन लोगों का दर्द महसूस होता है जिन्होनें देश के लिए वीर शहीदों को जन्म दिया .
    डॉ विश्वास जी को बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी कृति के लिए.
    और उन सब शहीदों को शत शत नमन जिनकी क़ुरबानी के कारण हम सब चैन से सोते हैं.
    Om Prabhakar Bharti
    Jamshedpur

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  5. Dr Kumar I was really happy to meet you yesterday in the Banaras rally against corruption.Your Poetry was really very nice and appealing.I congratulate and wish you for grand success in the life. It is also a matter of patriotism that you participate in such programs to motivate others to fight against corruption. Congrats again! kindly give me your contact no so that we, citizens of varanasi could invite you you in important occasions.

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  6. dr vishwas maine aapko do jagah suna.. iit kgp aur meri kolkata..!!!!!
    aap ki kavitayein sachmuch mann ko nichodne wali hoti hain..
    haste hue gambhir baatein kehna to aapki pehchaan hai..!!
    aapko mera salaam...!!!!

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  7. प्रभावित करती रचना .
    ..

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  8. अदभुत क्या कहन इस रचनाधर्मिता के

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