Monday, September 06, 2010

हिन्दी की दुर्दशा... (काका हाथरसी)

विशेष नोट : काका हाथरसी बहुत छोटी-सी आयु (मेरी ही आयु की बात कर रहा हूं) से ही मेरे पसंदीदा हास्य कवि रहे हैं... आकाशवाणी के कार्यक्रमों को सुनने वाले जानते हैं कि उनकी कुण्डलियां बेहद प्रसिद्ध रही हैं... ऐसी ही दो कुण्डलियां उन्होंने देश में हिन्दी की हो रही दुर्दशा पर भी लिखी थीं, जो आज kavitakosh.org से आपके सामने लेकर आ रहा हूं...

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य,
सुना, रूस में हो गई, है हिन्दी अनिवार्य,
है हिन्दी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा,
बनने वालों के मुंह पर, क्या पड़ा तमाचा,
कहं 'काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में,
नहीं डूब सकते क्या, चुल्लू भर पानी में...

पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस,
हिन्दी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस,
जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी,
इंग्लिश रानी हुई हिन्द में, हिन्दी बांदी,
कहं 'काका' कविराय, ध्येय को भेजो लानत,
अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत...

2 comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...