विशेष नोट : यह कविता मैंने और मेरी मौसेरी बहन ने बचपन में याद की थी, और हमारे ननिहाल में यह सभी को याद है... उम्मीद है कि मेरे बच्चों को भी यह पसंद आएगी...
रचनाकार : अज्ञात
छोटा होना महा-मुसीबत...
छोटा होना महा-मुसीबत...
बीच बड़ों के जाकर बैठूं,
और ज़रा भी अकड़ूं-ऐठूं,
तुरत डांट सुननी पड़ती है,
ये कैसी खराब है आदत...
छोटा होना महा-मुसीबत...
अपने से छोटों को डांटूं,
मम्मी कहती, ज़रा ठहर तू,
बड़ा डांटने वाला आया,
क्या तेरी आई है शामत...
छोटा होना महा-मुसीबत...
हे ईश्वर, मुझे बड़ा बना दे,
मेरे दाढ़ी-मूंछ उगा दे,
क्योंकि बड़ों की यही निशानी,
रोज़ सवेरे करें हजामत...
छोटा होना महा-मुसीबत...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Friday, January 08, 2010
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