Thursday, September 08, 2011

सूरज, चांद और अखबार... (विवेक रस्तोगी)

विशेष नोट : मेरे विचार में छोटे-छोटे बच्चों को आसपास की चीज़ों के बारे में जानकारी देने और सिखाने के लिए कविताएं बेहतरीन ज़रिया होती हैं... छोटी-छोटी लयबद्ध कविताएं बच्चे स्वभावतः जल्दी याद कर लेते हैं, सो, इस बार प्रयास किया है, तीन छोटी-छोटी कविताएं लिखकर, उनके माध्यम से सूरज, चांद और अखबार के बारे में सिखाने का...

सूरज


दिन भर देता हमें रोशनी,
सबको मार्ग दिखाता है...
शाम ढले यह छिप जाता है,
सूरज यह कहलाता है...
इसके चारों तरफ हमारी,
धरती चक्कर काटती है...
इस तारे में, आग भरी है,
धूप हमें यह बांटती है...

चांद


रात हुई, और गगन को देखा,
पाया एक अनूठा मंजर...
तारों में एक गेंद पड़ी थी,
चमक रही थी, वह जमकर...
किसी रात यह छोटी होती,
किसी रात में बिल्कुल गोल...
किसी रात यह नज़र न आती,
चंदा मामा इसको बोल...

अखबार


सुबह-सवेरे, आ जाता है,
खबरें लेकर, दुनियाभर की...
कहलाता है यह अखबार,
तस्वीरें लाता सुन्दर-सी...
पापा उठकर सुबह-सवेरे,
पढ़ते हैं, सबसे पहले...
कहते हैं, सुधरेगी भाषा,
बच्चे गर इसको पढ़ लें...

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