विशेष नोट : यह युवा कवि एवं पत्रकार विवेक भटनागर द्वारा रचित बाल कविता है, जो अचानक ही इंटरनेट पर दिख गई, और अच्छी लगी, सो, आप लोग भी इसका आनंद लें...


सुपरमैन हैं मेरे पापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
अक्सर चीतों से भिड़ जाते...
शेरों से भी न घबराते...
भालू से कुश्ती में जीते...
हाथी तक का दिल दहलाते...
मगरमच्छ का जबड़ा नापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
भूत-प्रेत भी उनसे डरते...
सारे उनकी सेवा करते...
सभी चुड़ैलें झाड़ू देतीं...
सारे राक्षस पानी भरते...
उनमें पापा का डर व्यापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
आसमान तक सीढ़ी रखते...
खूब दूर तक चढ़ते जाते...
इंद्रलोक में जाकर वह तो...
इंद्रदेव से हाथ मिलाते...
उनसे डर इंद्रासन कांपा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
विवेक भटनागर जी की इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद मेरी फेसबुक मित्र, आदरणीय शरद जोशी जी की पुत्री तथा टीवी अभिनेत्री नेहा शरद ने इस कविता में कुछ जोड़ा, सो, वह भी प्रस्तुत है...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
मम्मी से थोड़ा घबराते...
उनको देख-देख हकलाते...
सिर झुकाकर ऐसे रहते,
जैसे मम्मी से शरमाते...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
अक्सर चीतों से भिड़ जाते...
शेरों से भी न घबराते...
भालू से कुश्ती में जीते...
हाथी तक का दिल दहलाते...
मगरमच्छ का जबड़ा नापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
भूत-प्रेत भी उनसे डरते...
सारे उनकी सेवा करते...
सभी चुड़ैलें झाड़ू देतीं...
सारे राक्षस पानी भरते...
उनमें पापा का डर व्यापा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
आसमान तक सीढ़ी रखते...
खूब दूर तक चढ़ते जाते...
इंद्रलोक में जाकर वह तो...
इंद्रदेव से हाथ मिलाते...
उनसे डर इंद्रासन कांपा...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
विवेक भटनागर जी की इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद मेरी फेसबुक मित्र, आदरणीय शरद जोशी जी की पुत्री तथा टीवी अभिनेत्री नेहा शरद ने इस कविता में कुछ जोड़ा, सो, वह भी प्रस्तुत है...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...
मम्मी से थोड़ा घबराते...
उनको देख-देख हकलाते...
सिर झुकाकर ऐसे रहते,
जैसे मम्मी से शरमाते...
सुपरमैन हैं मेरे पापा...