विशेष नोट : आज अचानक पापा के पास गया तो वह 'आस्था' चैनल देख रहे थे, जिस पर एक संत एवं कवि सम्मलेन आ रहा था... सम्मलेन के दौरान स्वामी रामदेव ने खासतौर पर एक युवा कवि से फरमाइश की कि वह अपनी 'मां' वाली कविता सुनाएं... उत्सुकता जगी तो सुनने बैठ गया... बेहद खूबसूरत कविता और उससे भी ज्यादा खूबसूरत विचार... दिल को छू गई, और आंखें नम हो गईं... तुरंत आप लोगो के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं...
किसी की खातिर अल्ला होगा, किसी की खातिर राम...
लेकिन अपनी खातिर तो है, मां ही चारों धाम...
जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था...
उसका नन्हा-सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था...
उसके चेहरे की झलक देख, चेहरा फूलों-सा खिलता था...
उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था...
हाथों से बालों को नोंचा, पैरों से खूब प्रहार किया...
फिर भी उस मां ने पुचकारा, हमको जी भर के प्यार किया...
मैं उसका राजा बेटा था, वो आंख का तारा कहती थी...
मैं बनूं बुढापे में उसका, बस, एक सहारा कहती थी...
उंगली को पकड़ चलाया था, पढ़ने विद्यालय भेजा था...
मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था...
मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी...
मेरी राहों के कांटे चुन, वो खुद गुलाब बन जाती थी...
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्यार का ले आया...
जिस दिल में मां की मूरत थी, वो रामकली को दे आया...
शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया...
अब करवाचौथ मनाता हूं, मां की ममता को भूल गया...
हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी...
हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी...
हम भूल गए, वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी...
हमको सूखा बिस्तर देकर, खुद गीले में सो जाती थी...
हम भूल गए, उसने ही होठों को भाषा सिखलाई थी...
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गाई थी...
हम भूल गए हर गलती पर, उसने डांटा-समझाया था...
बच जाऊं बुरी नजर से, काला टीका सदा लगाया था...
हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बन्धन तोड़ आए...
बंगले में कुत्ते पाल लिए, मां को वृद्धाश्रम छोड़ आए...
उसके सपनों का महल गिराकर, कंकर-कंकर बीन लिए...
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए...
हम मां को घर के बंटवारे की अभिलाषा तक ले आए...
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए...
मां की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है...
गर मां अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है...
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी मां क्या पाती है...
रूखा-सूखा खा लेती है, पानी पीकर सो जाती है...
जो मां जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं...
वो लाखों पुण्य भले कर लें, इंसान नहीं बन सकते हैं...
मां जिसको भी जल दे दे, वो पौधा संदल बन जाता है...
मां के चरणों को छूकर पानी, गंगाजल बन जाता है...
मां के आंचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है...
मां के चरणों में जन्नत है, गिरजाघर और शिवाला है...
हिमगिरि जैसी ऊंचाई है, सागर जैसी गहराई है...
दुनिया में जितनी खुशबू है, मां के आंचल से आई है...
मां कबिरा की साखी जैसी, मां तुलसी की चौपाई है...
मीराबाई की पदावली, खुसरो की अमर रूबाई है...
मां आंगन की तुलसी जैसी, पावन बरगद की छाया है...
मां वेद ऋचाओं की गरिमा, मां महाकाव्य की काया है...
मां मानसरोवर ममता का, मां गोमुख की ऊंचाई है...
मां परिवारों का संगम है, मां रिश्तों की गहराई है...
मां हरी दूब है धरती की, मां केसर वाली क्यारी है...
मां की उपमा केवल मां है, मां हर घर की फुलवारी है...
सातों सुर नर्तन करते, जब कोई मां लोरी गाती है...
मां जिस रोटी को छू लेती है, वो प्रसाद बन जाती है...
मां हंसती है तो धरती का ज़र्रा-ज़र्रा मुस्काता है...
देखो तो दूर क्षितिज, अम्बर धरती को शीश झुकाता है...
माना मेरे घर की दीवारों में चन्दा-सी मूरत है...
पर मेरे मन के मंदिर में, बस केवल मां की मूरत है...
मां सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा अनुसूया मरियम सीता है...
मां पावनता में रामचरित मानस है, भगवत गीता है...
अम्मा तेरी हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है...
हे मां, तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है...
सारे तीरथ के पुण्य जहां, मैं उन चरणों में लेटा हूं...
जिनके कोई सन्तान नहीं, मैं उन मांओं का बेटा हूं...
हर घर में मां की पूजा हो, ऐसा संकल्प उठाता हूं...
मैं दुनिया की हर मां के चरणों में यह शीश झुकाता हूं...
बचपन से ही कविताओं का शौकीन रहा हूं, व नानी, मां, मौसियों के संस्कृत श्लोक व भजन भी सुनता था... कुछ का अनुवाद भी किया है... वैसे यहां अनेक रचनाएं मौजूद हैं, जिनमें कुछ के बोल मार्मिक हैं, कुछ हमें गुदगुदाते हैं... और हां, यहां प्रकाशित प्रत्येक रचना के कॉपीराइट उसके रचयिता या प्रकाशक के पास ही हैं... उन्हें श्रेय देकर ही इन रचनाओं को प्रकाशित कर रहा हूं, परंतु यदि किसी को आपत्ति हो तो कृपया vivek.rastogi.2004@gmail.com पर सूचना दें, रचना को तुरंत हटा लिया जाएगा...
Wednesday, April 01, 2009
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बहुत खूब!
ReplyDeleteawesome!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद, अनिल... आपका ब्लॉग भी देखा, तबीयत प्रसन्न हो गई, खासतौर पर लगातार मेहनत करके अपने अध्यापक को गलत साबित करने वाली बात... यही सोच बनाए रखें, हमेशा सफल होंगे...
ReplyDeleteThanks a lot, Alok...
ReplyDeleteनमस्ते विवेक जी!
ReplyDeleteइस कविता के लिये और क्या कहूं, बस एक ध्नयवाद ह्रदय की गहराईयों से!
रचना. (www.rachanabajaj.wordpress.com)
नमस्कार रचना जी... किसी मां की संतान को किसी मां की संतान का धन्यवाद करने की आवश्यकता नहीं होती... बस, यह कविता सचमुच अंतर्तम की गहराइयों को छू गई थी, इसलिए ब्लॉग पर जोड़ दिया था, सभी मांओं की संतानों के लिए...
ReplyDeleteये कविता पढ़ते समय आँखों में आंसू रोक पाना मुश्किल है
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