विशेष नोट : कविताकोश.ओआरजी पर गोपाल सिंह नेपाली द्वारा रचित यह कविता 'भाई-बहन' मिली, सो, रक्षाबंधन के पर्व पर सभी भाई-बहनों के लिए ले आया हूं...
तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूं,
तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बनूं,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूं, लाल बनूं,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूं,
यहां न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
तू आंगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला...
बहन प्रेम का पुतला हूं मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक, तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की, दोनों मंगल-मोद बनी,
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना,
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना...
भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गंगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घड़ी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है,
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है...
तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बनूं,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूं, लाल बनूं,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूं,
यहां न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
तू आंगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला...
बहन प्रेम का पुतला हूं मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक, तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की, दोनों मंगल-मोद बनी,
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना,
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना...
भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गंगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घड़ी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है,
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है...
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