Thursday, September 29, 2011

दुर्गा के 108 नाम - दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) - अनुवाद सहित...

विशेष नोट : शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा की आराधना करने हेतु दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का विशेष महत्व होता है... इसी कारण सभी हिन्दी ब्लॉगप्रेमियों के लिए विकीपीडिया से साभार लेकर स्तोत्र तथा http://hi.bharatdiscovery.org से साभार लेकर इसका अर्थ प्रकाशित कर रहा हूं...

॥ दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (विश्वसारतन्त्र) ॥

॥ ॐ ॥

॥ श्री दुर्गायै नमः ॥

॥ श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

॥ ईश्वर उवाच ॥

शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ 1 ॥

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ 2 ॥

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ 3 ॥

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्द स्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ 4 ॥

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ 5 ॥

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बरपरिधाना कलमञ्जरीरञ्जिनी ॥ 6 ॥

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ 7 ॥

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ 8 ॥

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना ॥ 9 ॥

निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ 10 ॥

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ 11 ॥

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ 12 ॥

अप्रौढ़ा चैव प्रौढ़ा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥ 13 ॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ 14 ॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ 15 ॥

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ 16 ॥

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ 17 ॥

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ 18 ॥

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ 19 ॥

गोरोचनालक्तककुङ्कुमेव सिन्धूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ 20 ॥

भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् संपदां पदम् ॥ 21 ॥

॥ इति श्री विश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥

दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का अर्थ

॥ शंकरजी पार्वतीजी से कहते हैं ॥

कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशत (108) नामों का वर्णन करता हूं, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ या श्रवण) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं... ॥ 1 ॥

सती (दक्ष की बेटी), साध्वी (आशावादी), भवप्रीता (भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली), भवानी (ब्रह्मांड की निवास), भवमोचनी (संसारबंधनों से मुक्त करने वाली), आर्या, दुर्गा, जया, आद्य (शुरुआत की वास्तविकता), त्रिनेत्र (तीन आंखों वाली), शूलधारिणी, पिनाकधारिणी (शिव का त्रिशूल धारण करने वाली), चित्रा (सुरम्य), चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली), महातपा: (भारी तपस्या करने वाली), मन: (मनन-शक्ति), बुद्धि: (बोधशक्ति), अहंकारी (अहंताका आश्रय), चित्तरूपा (वह जो सोच की अवस्था में है), चिता, चिति: (चेतना), सर्वमन्त्रमयी, सत्ता (सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है), सत्यानन्दस्वरूपिणी (अनन्त आनंद का रूप), अनन्ता (जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं), भाविनी (सबको उत्पन्न करने वाली, ख़ूबसूरत औरत), भाव्या (भावना एवं ध्यान करने योग्य), भव्या (कल्याणरूपा, भव्यता के साथ), अभव्या (जिससे बढकर भव्य कुछ नहीं), सदागति (हमेशा गति में, मोक्ष दान), शाम्भवी (शिवप्रिया, शंभू की पत्नी), देवमाता, चिन्ता, रत्‍‌नप्रिया (गहने से प्यार), सर्वविद्या (ज्ञान का निवास), दक्षकन्या (दक्ष की बेटी), दक्षयज्ञविनाशिनी, अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली), अनेकवर्णा (अनेक रंगों वाली), पाटला (लाल रंग वाली), पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरिधाना (रेशमी वस्त्र पहनने वाली), कलमञ्जीररञ्जिनी (मधुर ध्वनि करने वाले मञ्जीर / पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली), अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली), क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर), सुन्दरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातङ्गी, मतङ्गमुनिपूजिता, ब्राह्मी, माहेश्वरी, इंद्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी:, पुरुषाकृति: (वह जो पुरुष का रूप ले ले), विमला (आनन्द प्रदान करने वाली), उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना, निशुम्भशुम्भहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहंत्री, चण्डमुण्डविनाशिनी, सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति, अप्रौढ़ा (जो कभी पुराना न हो), प्रौढ़ा (जो पुराना है), वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि:, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदूती, करली, अनन्ता (विनाशरहिता), परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मवादिनी ॥ 2-15 ॥

देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है... ॥ 16 ॥

वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है... ॥ 17 ॥

कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करें, फिर अष्टोत्तरशत नाम का पाठ आरम्भ करें... ॥ 18 ॥

देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है... राजा उसके दास हो जाते हैं... वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है... ॥ 19 ॥

गोरोचन, लाक्षा, कुङ्कुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु - इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है... ॥ 20 ॥

भौमवती अमावास्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है... ॥ 21 ॥

Thursday, September 08, 2011

सूरज, चांद और अखबार... (विवेक रस्तोगी)

विशेष नोट : मेरे विचार में छोटे-छोटे बच्चों को आसपास की चीज़ों के बारे में जानकारी देने और सिखाने के लिए कविताएं बेहतरीन ज़रिया होती हैं... छोटी-छोटी लयबद्ध कविताएं बच्चे स्वभावतः जल्दी याद कर लेते हैं, सो, इस बार प्रयास किया है, तीन छोटी-छोटी कविताएं लिखकर, उनके माध्यम से सूरज, चांद और अखबार के बारे में सिखाने का...

सूरज


दिन भर देता हमें रोशनी,
सबको मार्ग दिखाता है...
शाम ढले यह छिप जाता है,
सूरज यह कहलाता है...
इसके चारों तरफ हमारी,
धरती चक्कर काटती है...
इस तारे में, आग भरी है,
धूप हमें यह बांटती है...

चांद


रात हुई, और गगन को देखा,
पाया एक अनूठा मंजर...
तारों में एक गेंद पड़ी थी,
चमक रही थी, वह जमकर...
किसी रात यह छोटी होती,
किसी रात में बिल्कुल गोल...
किसी रात यह नज़र न आती,
चंदा मामा इसको बोल...

अखबार


सुबह-सवेरे, आ जाता है,
खबरें लेकर, दुनियाभर की...
कहलाता है यह अखबार,
तस्वीरें लाता सुन्दर-सी...
पापा उठकर सुबह-सवेरे,
पढ़ते हैं, सबसे पहले...
कहते हैं, सुधरेगी भाषा,
बच्चे गर इसको पढ़ लें...

Friday, September 02, 2011

आज सड़कों पर... (दुष्यंत कुमार)

विशेष नोट : 'हो गई है पीर पर्वत सी...' के अतिरिक्त दुष्यंत कुमार की यह कविता 'आज सड़कों पर...' भी मुझे काफी पसंद है... सो, अब आप लोग भी इसे पढ़ें... 

 दुष्यंत कुमार (1 सितंबर, 1933 - 30 दिसंबर, 1975)

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अंधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख...

एक दरिया है यहां पर, दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख, पतवारें न देख...

अब यकीनन ठोस है धरती, हकीकत की तरह,
यह हकीकत देख, लेकिन खौफ के मारे न देख...

वे सहारे भी नहीं, अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख...

ये धुंधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है,
रोजनों को देख, दीवारों में दीवारें न देख...

राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारियां ही देख, अंगारे न देख...
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