विशेष नोट : कुछ दिन पहले एक किस्सा सुना था, जिसमें चार कामयाब बेटों के मां-बाप की मौत मुफलिसी की वजह से हुई... तभी से कुछ लिखना चाह रहा था... आज कोशिश की है, लेकिन संतुष्ट नहीं हूं, क्योंकि वैसा नहीं लिख पाया हूं, जैसा मन में घुमड़ रहा था...
अपने चारों बेटों को, मां-बाप ने पाला यकसां ही...
यकसां ही उनको सिखलाया, यकसां ही दी थी शिक्षा भी...
मां का आंचल सिर पर न होकर, पेट पर उसके बंधता था...
उसके हिस्से का खाना खाकर बेटा हर दिन हंसता था...
बाप के घुटने जाम हुए, लेकिन वह चलता जाता था...
पढ़ते हैं, मेहनत करते हैं, बेटों को देख सिहाता था...
पीएफ खत्म, अब कर्जा है, लेकिन चारों हैं ब्याह गए...
चारों ही खुश हैं जीवन में, मां-बाप की छाती फुला गए...
चारों के बच्चे भी हैं अब, चारों अब चैन से सोते हैं...
मां-बाप इसी में खुश हैं कि अपने अब छह-छह पोते हैं...
मां-बाप हैं लेकिन किल्लत में, ऊपर से रोगों पर खर्चा...
डॉक्टर आता है हर हफ्ते, ले फीस, दे जाता है पर्चा...
चारों में काफी एका है, चारों ही ध्यान न देते हैं...
मां-बाप को क्या-क्या दिक्कत हैं, इस पर वे कान न देते हैं...
मां-बाप कलपते रहते हैं, रोते हैं, तड़पते रहते हैं...
चारों को फुर्सत नहीं मगर, हर बार यही वे कहते हैं...
आपस में बुड्ढे-बुढ़िया अब, कुछ-कुछ ये बातें करते हैं...
जीवन ने क्या-क्या दिखलाया, सब देख भी हम न मरते हैं...
हम दो ने पाले चार-चार, उन्हें देख-देख न अघाते हैं...
हैरानी है, अब चारों मिलकर भी दो को पाल न पाते हैं...
अपने चारों बेटों को, मां-बाप ने पाला यकसां ही...
यकसां ही उनको सिखलाया, यकसां ही दी थी शिक्षा भी...
मां का आंचल सिर पर न होकर, पेट पर उसके बंधता था...
उसके हिस्से का खाना खाकर बेटा हर दिन हंसता था...
बाप के घुटने जाम हुए, लेकिन वह चलता जाता था...
पढ़ते हैं, मेहनत करते हैं, बेटों को देख सिहाता था...
पीएफ खत्म, अब कर्जा है, लेकिन चारों हैं ब्याह गए...
चारों ही खुश हैं जीवन में, मां-बाप की छाती फुला गए...
चारों के बच्चे भी हैं अब, चारों अब चैन से सोते हैं...
मां-बाप इसी में खुश हैं कि अपने अब छह-छह पोते हैं...
मां-बाप हैं लेकिन किल्लत में, ऊपर से रोगों पर खर्चा...
डॉक्टर आता है हर हफ्ते, ले फीस, दे जाता है पर्चा...
चारों में काफी एका है, चारों ही ध्यान न देते हैं...
मां-बाप को क्या-क्या दिक्कत हैं, इस पर वे कान न देते हैं...
मां-बाप कलपते रहते हैं, रोते हैं, तड़पते रहते हैं...
चारों को फुर्सत नहीं मगर, हर बार यही वे कहते हैं...
आपस में बुड्ढे-बुढ़िया अब, कुछ-कुछ ये बातें करते हैं...
जीवन ने क्या-क्या दिखलाया, सब देख भी हम न मरते हैं...
हम दो ने पाले चार-चार, उन्हें देख-देख न अघाते हैं...
हैरानी है, अब चारों मिलकर भी दो को पाल न पाते हैं...